Book Title: Sramana 2010 07
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 34
________________ पश्चिम भारत के जैनाचार्यों का साहित्यिक अवदान : ३३ में इसके कला एवं लक्षण शास्त्र की विशेष प्रशंसा की है। इसी प्रकार आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने भी अपने विशेषावश्यक भाष्य में इसका वासवदत्त कथा के साथ उल्लेख किया है। प्रभावक चरित में इनके अन्य दो ग्रन्थनिर्वाणकलिका और प्रश्नप्रकाश का उल्लेख मिलता है। निर्वाणकलिका में दीक्षा सम्बन्धी नियमों की चर्चा है तथा प्रश्नप्रकाश को ज्योतिष विषयक ग्रन्थ माना गया है। पादलिप्तसूरि की विद्वत्ता एवं सरस कविता की प्रशंसा करते हुए कुवलयमाला के रचयिता उद्योतनसूरि ने सातवाहन राज हाल की विद्वत्गोष्ठियों में इनको गले के हार के समान सुशोभित बताया है। णिम्मलमणेण गुणगरुयएण परमत्थरयणसारेण । पालित्तएण हालो हारेण व सोहई गोट्ठीसु२२ ।। उद्योतनसूरि की इस प्रशंसा से स्पष्ट हो जाता है कि आचार्य पादलिप्त धर्म दर्शन के ज्ञाता होने के साथ-साथ कवि शिरोमणि भी थे। ___पश्चिम भारत के इन श्रेष्ठ आचार्यों में नियुक्तिकार भद्रबाहु का नाम सर्वोपरि है। श्रुतकेवली भद्रबाहु से अन्तर स्थापित करने के लिए इन्हें भद्रबाहु द्वितीय भी कहा जाता है।३३ प्रबन्धकोश में इन्हें महाराष्ट्र के प्रतिष्ठानपुर का बताया गया है।३४ ये ब्राह्मण धर्मावलम्बी थे और गुप्तकालीन प्रसिद्ध विद्वान् वाराहमिहिर के ज्येष्ठ भ्राता थे। प्रबन्धकोश में विस्तार से बताया गया है कि ये दोनों सहोदर भ्राता निर्धन एवं निराश्रित थे। संसार से विरक्त हो, दोनों भाइयों ने जैन धर्म की दीक्षा ली और दोनों ज्योतिष शास्त्र के प्रकाण्ड पंडित बने। कालान्तर में दोनों भाइयों में विरोध हो गया और दोनों ने अपनी अलगअलग राह पकड़ी। आचार्य भद्रबाहु का नाम वाराहमिहिर के कारण प्रसिद्ध नहीं है अपितु वे अपनी विद्वत्तापूर्ण रचनाओं के कारण अमर हो गये। वे जैनागम के प्रकाण्ड ज्ञाता थे और नियुक्ति साहित्य के रूप में उन्होंने आगमों की सूत्रमयी व्याख्यायें भी की। नियुक्तियाँ आर्या छन्द में रचित पद्ममयी प्राकृत रचनायें हैं। ये नियुक्तियाँ अपनी विविध विषयों के कारण ही नहीं अपितु अपनी सांस्कृतिक सामग्री के लिए भी विख्यात हैं। इन नियुक्तियों का जैन परम्परा में वही स्थान है जो वैदिक परम्परा में निरुक्त का था। आचार्य भद्रबाहु ने स्वयं दस ग्रन्थों पर दस नियुक्तियों की रचना करने का उल्लेख किया है।३५ जिन आगम ग्रन्थों पर उन्होंने नियुक्ति की रचना की, वे निम्न हैं- १. आवश्यक, २. दशवैकालिक, ३. उत्तराध्ययन,

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