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पश्चिम भारत के जैनाचार्यों का साहित्यिक अवदान : २९
विशेषावश्यक भाष्य के रचयिता आचार्य जिनभद्र क्षमाश्रमण से समीकृत किया है।१७ प्रो. शाह ने प्रतिमाओं के आधार पर इनका काल ५५० से ६०० ई. के मध्य रखा है। उत्कीर्ण लेखों के अनुसार वह निवृत्ति कुल से सम्बन्धित थे तथा यह भी स्पष्ट होता है कि उनका एक नाम वाचनाचार्य भी था। कहा जाता है कि इन्होंने सुारक (आधुनिक सोपारा) नगर के एक सेठ के चारों पुत्रों को दीक्षा प्रदान की थी। कालान्तर में इनके नाम से भिन्न-भिन्न चार प्रकार की शाखाएँ उद्भूत हुईं और उन्हीं कुलों के नाम पर उनकी प्रसिद्धि
जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण एक भाष्यकार के रूप में अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। आगमों के व्याख्या-ग्रन्थों में नियुक्ति के बाद भाष्य एवं चूर्णि का स्थान आता है। नियुक्तियाँ गूढ़ होती हैं और उनके अर्थ सांकेतिक भाषा में होने के कारण दुर्बोध होते हैं। इन नियुक्तियों को समझने के लिए भाष्य का सहारा लेना पड़ता है। बिना भाष्य के इनके अर्थों को समझना असम्भव है। आचार्य के द्वारा रचित ग्रन्थ निम्न हैं१८ १. विशेषावश्यक भाष्य, २. विशेषावश्यक भाष्य स्वोपज्ञवृत्ति, ३. बृहत्संग्रहणी, ४. वृहत्क्षेत्र समास, ५. विशेषणवती, ६. जीतकल्प, ७. जीतकल्पभाष्य, ८. अनुयोगद्वारचूर्णि, ९. ध्यानशतक। इन ग्रन्थों में अनुयोगद्वारचूर्णि गद्यात्मक है, शेष रचनायें पद्मात्मक हैं। इसी प्रकार विशेषावश्यक भाष्य पर स्वोपज्ञवृत्ति संस्कृत में है जबकि शेष रचनाएं प्राकृत में निबद्ध हैं। ध्यानशतक के बारे में विद्वानों में सन्देह है कि यह उनकी रचना है या नहीं।
विशेषावश्यक भाष्य१९ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें ३६०३ गाथाएँ हैं। यह एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें जैन आगमों में वर्णित सभी महत्त्वपूर्ण विषयों की चर्चा की गई है। इसमें जैन तत्त्वों का निरूपण अन्य दर्शनों की तुलना के साथ प्रस्तुत है जिससे इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। इसमें गणधरवाद का पूरा विवेचन मिलता है। हम जानते हैं कि आवश्यकनियुक्ति में सात निह्नवों की चर्चा की गयी है। इस भाष्य में आठवें निह्नव बोटिक की भी चर्चा है। इन्हीं बोटिकों को कई विद्वानों ने दिगम्बर सम्प्रदाय से समीकृत किया है। इसी प्रकार जीतकल्पभाष्य में २६०६ गाथायें हैं। भाष्यकर्ता ने साधुसाध्वियों के प्रायश्चित-विधि का विस्तार से उल्लेख किया है। इसी प्रकार जीतकल्प भाष्य आचार्य जिनभद्र की अपनी ही कृति जीतकल्पसूत्र पर लिखा हुआ भाष्य है। इसमें उनके द्वारा लिखित व्यवहार भाष्य, पंचकल्प महाभाष्य