Book Title: Sramana 2010 07
Author(s): Ashok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 15
________________ १४ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - १० समकालीन एक दूसरी पीढ़ी भी हमारे सामने आई थी, जिसमें पं० कैलाशचन्द्र जी, पं० जगन्मोहन लाल जी, पं० (डॉ०) दरबारीलाल जी कोठिया, पं० उदयचन्द जी, पं० नाथूलाल जी, पं० फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री आदि आते हैं। प्रायः ये सभी विद्वान् दिगम्बर परम्परा के साहित्य से ही अधिक परिचित रहे और इसलिए इनके शोध एवम् अध्ययन का क्षेत्र भी उसी दिशा तक सीमित रहा। इसी प्रकार श्वेताम्बर परम्परा में पं० अगरचंद जी एवं भँवरलाल जी नाहटा जैसे विद्वान् हुए जो यद्यपि किसी कालेज एवं पाठशाला में शिक्षित नहीं थे, फिर भी अपनी प्रतिभा के बल पर विशेष रूप से श्वेताम्बर जैन आचार्यों द्वारा लिखित हजारों कृतियों को प्रकाश में लाने का श्रेय इन्हें दिया जा सकता है। इसी प्रकार जैन सन्तों में श्वेताम्बर परम्परा के आचार्य राजेन्द्रसूरि जी ने अभिधानराजेन्द्र कोश, लावण्य विजय जी ने धातु-रत्नाकर और दिगम्बर परम्परा के जिनेन्द्र वर्णी जी ने जैनेन्द्र- सिद्धान्तकोश आदि सन्दर्भ ग्रन्थों की रचना की। इसी प्रकार डॉ० मोहनलाल मेहता एवं डॉ० के० ऋषभचन्द्र ने 'प्राकृत-प्रापर-नेम्स' जैसे ग्रन्थों की रचना कर जैन विद्या में शोध को सुविधाजनक एवं प्रामाणिक बनाने में योगदान दिया। इसी तरह से आचार्य तुलसी जी के नेतृत्व में आगम शब्दकोश, वनस्पति कोश, एकार्थक कोश आदि की रचना भी इस दिशा में सहायक रही। श्वेताम्बर परम्परा में कुछ मुनिजन भी इस शोध-क्षेत्र में समर्पित रहे हैं। जैनागमों के सम्पादन में पूज्य मुनि पुण्यविजयजी और जम्बूविजयजी के अवदान को हम भुला नहीं सकते हैं। इसी प्रकार जैन इतिहास के क्षेत्र में मुनि कल्याणविजयजी और किसी सीमा तक आचार्य हस्तीमलजी के अवदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। इसी प्रकार पं० मुनि कन्हैयालाल जी 'कमल' का अनुयोग ग्रन्थों की रचना और युवाचार्य मिश्रीमल जी का आगम ग्रन्थों के सम्पादन और प्रकाशन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अवदान है। आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी का जैन विद्या का आधुनिक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुतीकरण जैन - शोध की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण योगदान माना जा सकता है। दिगम्बर परम्परा में आचार्य विद्यानन्द, आचार्य विद्यासार, उपाध्याय ज्ञान-सागर आदि का योगदान दिगम्बर परम्परानुसारी रहा। आज की नई पीढ़ी के विद्वानों में प्रो० सुदर्शनलाल, प्रो० धर्मचन्द्र, प्रो० कमलेश कुमार, प्रो० फूलचन्द प्रेमी, डॉ० रमेशचन्द जैन आदि प्रमुख हैं। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर से प्रकाशित 'सम्पर्क' के चतुर्थ खण्ड में जैन विद्या से सम्बन्धित सैंतालिस शोध संस्थाओं की सूची दी गई है । यद्यपि

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