________________
तनाव : कारण एवं निवारण
कायोत्सर्ग द्वारा तनाव मुक्ति
कायोत्सर्ग का प्रयोग तनाव मुक्ति का प्रयोग है। कायोत्सर्ग में शरीर की शिथिलता व ममत्व के विसर्जन का अभ्यास किया जाता है, जिससे शरीर सर्वथा हल्का व तनाव रहित हो जाता है । मानसिक बोझ कम हो जाता है। कायोत्सर्ग तनाव मुक्ति का अचूक प्रयोग है, जो इसका प्रयोग करता है वह तनाव मुक्त हो जाता है। ऐसा कभी नहीं होता है कि व्यक्ति कायोत्सर्ग करे और तनाव मुक्त न हो। ४३
१३
चार्ल्सवर्थ और नाथन ने भी कायोत्सर्ग को तनाव मुक्ति का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग बताया है। उन्होंने अपनी पुस्तक “स्ट्रेस मैनेजमेंट" (Stress Management) में इसके बारे में विस्तृत चर्चा की है । ४४
प्रेक्षाध्यान द्वारा तनाव मुक्ति
तेरापंथ धर्मसंघ के दशम आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने जैन आगमों का मंथन करके ध्यान की एक अभिनव प्रक्रिया प्रेक्षाध्यान को जन-समूह के सामने प्रकाशित किया है। यह प्रक्रिया उपादान को जानने का अभ्यास है। जो व्यक्ति प्रेक्षाध्यान की प्रक्रिया से गुजरता है वही चेतना को जगाने वाले उपादान का विकास करता है। ४५ तनावों से मुक्ति पाने के लिए वे सरल उपाय बताते हैं कि आज का जीवन ही तनावग्रस्त है। प्रतिक्षण तनाव उत्पन्न करने वाली घटनाएं घटती रहती हैं। उस तनाव को विसर्जित करने का एकमात्र उपाय है- दीर्घ श्वांस प्रेक्षा । यदि कोई व्यक्ति १५-२० मिनट तक दीर्घ श्वांस प्रेक्षा का प्रयोग करता है तो पूरे दिन भर का तनाव दूर हो जाता है। ४६ श्वांस के माध्यम से किस प्रकार तनाव रहित हुआ जा सकता है, इसकी चर्चा चार्ल्सवर्थ और नाथन ने भी की है । ४७ प्रेक्षाध्यान बहिर्जगत् से अन्तर्जगत् की ओर ले जाने वाला प्रयोग है; जो तनाव से ग्रसित व्यक्ति, समाज व राष्ट्र के लिए परमावश्यक है।
Jain Education International
स्वाध्याय और सामायिक (समभाव) द्वारा तनाव मुक्ति
सत्साहित्य का अध्ययन करने से अच्छे विचार मन में आते हैं। अपने हित-अहित का ज्ञान होता है। स्वाध्याय से व्यक्ति स्वयं को पहचान कर तनाव मुक्त हो सकता है। आचार्य श्री हस्तीमल जी के अनुसार "जीवन की विषमता और मन की अस्वस्थता से मुक्ति पाने का मार्ग स्वाध्याय है । " ४८ इसी में आगे कहते हैं "घर-घर, कुटुम्ब - कुटुम्ब और जाति-जाति में लड़ाई झगड़े, कलह, क्लेश, और वैर-विरोध चल रहे हैं, वे स्वाध्याय से ही दूर हो सकते हैं । ४९ सामायिक से ही समताभाव आता है। सामायिक के बारे में उपाध्याय अमर मुनि का कहना है- “सामायिक बड़ी ही महत्त्वपूर्ण क्रिया है । यदि यह ठीक रूप से जीवन में उतर जाए तो संसार सागर से बेड़ा पार है' अर्थात् व्यक्ति तनाव मुक्त जीवन यापन कर सकता है।
११५०
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org