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श्रमण / जनवरी-मार्च / १९९७
तपागच्छीय मुनिसुंदरसूरि द्वारा रचित गुर्वावली (रचनाकाल वि०सं० १४६६ / ई० सन् १४०९), तपागच्छीय आचार्य हीरविजयसूरि के शिष्य धर्मसागरसूरि द्वारा रचित तपागच्छपट्टावली (रचनाकाल वि०सं०१६४८ / ई० सन् १५९२), बृहद्गच्छीय मुनिमाल द्वारा रचित बृहत्च्छगुर्वावली (रचनाकाल वि० सं० १७५१ / ई० सन् १६९५) आदि में यह घटना वि०सं०९९४ में हुई बतलायी गयी है किन्तु पश्चात्कालीन होने से उल्लिखित उक्त मत की प्रामाणिकता संदिग्ध मानी जा सकती है। इस सम्बन्ध में विस्तार के लिये द्रष्टव्य "बृहद्गच्छ का संक्षिप्त इतिहास" पं० दलसुख भाई मालवणिया अभिनन्दन ग्रन्थ वाराणसी, १९९२ई०, पृष्ठ १०५-११७/
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P. Peterson - Operation in Search of Sanskrit MSS, Vol. V. Bombay. 1896 A.D.. pp. 125-126.
पुहवीचंदचरिय (पृथ्वीचंद्रचरित्र), सम्पा०-मुनि रमणीकविजय, प्राकृत ग्रन्थ परिषद, ग्रन्थांक १६, अहमदाबाद-वाराणसी १९७२ ई० सन्, इसी ग्रन्थ की प्रस्तावना में भी उक्त गुरु- स्तुति प्रकाशित है जिसका आधार प्रो० पीटर्सन का उक्त ग्रन्थ ही है ।
A. P. Shah - Catalogue of Sanskrit and Prakrit MSS : Muni Shree Punya Vijayajis Callection, L.D. Series No. 5. Ahmedabad, 1965 A. D.. No. 5479. p. 349.
मोहनलाल दलीचंद देसाई - जैनगूर्जरकविओ, भाग-१, नवीन संस्करण, सम्पा० डॉ० ० जयन्त कोठारी, अहमदाबाद, १९८६ ई०, पृष्ठ-५२
वही
वही, भाग-१, पृष्ठ १०५
वही ।
वही, भाग-१, पृष्ठ ३९७
“पिप्पलगच्छगुर्वावली” सम्पा० भंवरलाल नाहटा, आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रन्थ, बम्बई १९५६ ई०, हिन्दी खण्ड, पृष्ठ १३- २२
१०. पूर्वं डीडिलाग्राम मूलनायक : श्री महावीरतः संवत् १२०८ वर्षे पिप्पलगच्छीय श्रीविजयसिंहसूरिभिः प्रतिष्ठितरः पश्चात् वीरपल्या प्रा० साह सहदेवकारिते प्रसादे पिप्पलाचार्य श्रीवीरप्रभसूरिभि: स्थापितः । संवत् १४६५ वर्षे । प्रतिष्ठा स्थान - जैन मंदिर कोटरा, सिरोही, पूरनचन्द नाहर जैनलेखसंग्रह, भाग-१, कलकत्ता, १९१८ ई०, लेखाङ्क ९६६ ।
१० अ. मधुसूदन ढांकी अने हरिशंकर प्रभाशंकर शास्त्री — “घोघानो जैन प्रतिमानिधि " श्री फार्बस गुजराती सभा, जनवरी-मार्च १९६५ ई०, पृष्ठ १९-२२ ।
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