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श्रमण
पुस्तक समीक्षा
" श्री पद्मनन्दि श्रावकाचार विधान" लेखक - राजमल पवैया, प्रकाशक-भरत पवैया, ४४, इब्राहीमपुरा, भोपाल, प्रथमावृत्ति १९९६, पृष्ठ- ८८, मूल्य - ८ रुपये ।
" श्री पद्मनन्दि श्रावकाचार विधान" पंचविंशतिका के छठे अधिकार 'उपासक संस्कार' पर आधारित एक छन्दोबद्ध रचना है। सम्पूर्ण रचना मुख्यतः तीन भागों में विभक्त । प्रथम भाग में श्रावकाचार पूजन की चर्चा है। द्वितीय भाग पूजन विधान को निरूपित किया गया है तथा तृतीय भाग में जिनपूजाष्टकम् स्तोत्र का वर्णन है । किसी भी सिद्धान्त को काव्य रूप प्रदान करना कठिन कार्य है और इस कठिन कार्य को सरलता प्रदान कर लेखक ने सराहनीय कार्य किया। यह पुस्तक श्रावकों के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
पुस्तक का मुद्रण कार्य निर्दोष एवं रूप सज्जा प्रशंसनीय है। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है।
डॉ० विजय कुमार
"सागर बूँद समाय", सम्पादक - मुनि समता सागर, प्रकाशक - विशाल जैन, ए - १२४ कस्तूरबा नगर, भोपाल, द्वितीय संस्करण, पृष्ठ- १७०।
“सागर बूँद समाय”, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज, जो शरीर रूपी बूँद में सम्पूर्ण विद्यारूपी सागर को पिरोये हुए हैं, के विचार सूत्रों का संग्रह है । संकलन एवं सम्पादन मुनि समता सागर जी ने किया है। प्रस्तुत रचना पाँच खण्डों में विभाजित है । प्रथम खण्ड में संस्तुति है जिसके अन्तर्गत आराध्य / आराधना, भक्ति / स्तुति, भक्ति / महिमा, श्रद्धा/समर्पण आदि; द्वितीय खण्ड, जो मुख्यतः तत्त्वमीमांसीय खण्ड है, के अन्तर्गत अनेकान्त/स्याद्वाद, प्रमाण / नय आदि है; तृतीय खण्ड ग्रन्थ का साधना पक्ष है जिसके अन्तर्गत रत्नत्रय, मोक्षमार्ग, ध्यान, समाधि आदि; चतुर्थ खण्ड जो धर्म - संस्कृति से सम्बन्धित है, के अन्तर्गत धर्म, गुरु-महिमा, संस्कृति - प्रवाह, तीर्थ, इतिहास, पर्व आदि है तथा पंचम खण्ड जिसमें नैतिकता को केन्द्रबिन्दु बनाया गया है, के अन्तर्गत
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