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पुस्तक समीक्षा
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न्याय-नीति, धर्म-नीति, वैराग्य-प्रेरणा, कर्त्तव्य-बोध, राष्ट्रभावना आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक की विशेषता यह है कि उपर्युक्त सभी विषयों से सम्बन्धित विचारसूत्रों का संग्रह आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा दिये गये विभिन्न प्रवचनों एवं चर्चाओं से किया गया है, जो एक महनीय कार्य है। संकलनकर्ता द्वारा संकलित यह रचना न केवल जैन समाज बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति के लिए बहुत उपयोगी है। इसके लिए संकलनकर्ता बधाई के पात्र हैं।
पुस्तक का कलेवर काफी आकर्षक, छपाई साफ एवं सुन्दर है। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है।
डॉ० विजय कुमार
'मुनिचर्या', संकलनकर्ती-गणिनी आर्यिका ज्ञानमती, प्रकाशक-दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर (मेरठ), उ०प्र०, प्रथम संस्करण १९९१, पृष्ठ-६२८, मूल्य-६० रुपये।
___ मुनिचर्या में यति क्रियाकलापों का संकलन हुआ है। गणिनी आर्यिका ज्ञानमती जी ने इसमें नित्य क्रियायें जैसे-मंगलाचरण, अहोरात्रि के कृतिकर्म, स्वाध्याय निष्ठावान विधि आदि; नैमित्तिक क्रियायें (पर्वचर्या) जैसे- चतुर्दशी क्रियाविधि, पाक्षिकी क्रियाविधि, सिद्ध प्रतिमावंदना क्रिया आदि; सुप्रभातस्तोत्र जैसे- चतुर्दिवंदना, दशलक्षण पर्वक्रिया, जंबूद्वीप वंदना क्रिया आदि तथा बृहद् संस्कृत भक्तियाँ, प्राकृत भक्तियाँ, लघु भक्तियाँ, भक्तियों के क्षेपक श्लोक आदि के संकलन किये हैं साथ ही उनके हिन्दी पद्यानुवाद भी किये हैं। संकलन करते समय कहीं-कहीं पर अपनी सूझ-बूझ के अनुसार उनमें कुछ संशोधन और परिवर्तन भी किये हैं, जैसे-सामान्य तौर पर मंगलाचरण में इस तरह का पाठ किया जाता है- “अरहंता मंगलं, अरहंता लोगुत्तमा, अरहते सरणं पवज्जामि", किन्तु गणिनी आर्यिका ज्ञानमती जी ने उसे अरहंत मंगलं, अरहंत लोगुत्तमा, अरहंत सरणं पवज्जामि कर दिया है। क्योंकि, इनकी दृष्टि में विभक्तिरहित पाठ ही प्राचीन एवं प्रामाणिक है। विभक्ति सहित पाठ को उन्होंने श्वेताम्बर मान्यता प्राप्त पाठ बताया है। इस तरह इस संकलन में संकलनकर्ती की दृष्टि न केवल मुनिचर्या को संकलित करना है वरन् उसकी प्राचीनता, प्रामाणिकता, साम्प्रदायिकता मान्यता आदि दर्शाना भी है, जो अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण और सराहनीय कार्य है। हिन्दी पद्यानुवाद से इसमें और सरलता एवं बोधगम्यता आ गई है। इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए संकलनकर्ती एवं प्रकाशक बधाई के पात्र हैं। पुस्तक की छपाई साफ और साजसज्जा सुन्दर एवं आकर्षक है।
डॉ० विजय कुमार
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