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पिप्पलगच्छ का इतिहास
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११. धनु धनु धर्मदेवसुरि, सारंग रा प्रतिबोधिउ ।
उगमतई नितु सूरि, सुहगुरु नितु नितु प्रणमीए ।।१०।। त्रिनि भव सारंग राय, देवाएसिहिं गुरि कहीय । धूधल जग विक्खाय, पडिबोही त्रिनि भव कहीया ।।११।।
पिप्पलगच्छगुर्वावलि-गुरहमाल, द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ९ ११अ.द्रष्टव्य-पिप्पलगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों
की सूची - लेख क्रमांक ६ १२. वही, लेखक्रमांक ६२, ६६, ६८, ७९ १३. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ९ १४. द्रष्टव्य, लेख क्रमांक १५६ १५. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ६-७ १६. संदर्भ क्रमांक ८ १७. पृथ्वीचंद्रचरित - संप० मुनि रमणीकविजय, प्राकृत ग्रन्न परिषद्, ग्रन्थांक १६,
अहमदाबाद-वाराणसी १९७२ ई०सन् । १८. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णी की प्रशस्ति
C.D. Dalal and L.B.Gandhi - Descriptive Catalogue of MSS in the Jaina Bhandars at Pattan.g.0.S. No. 76, Baroda - 1937 A.D. pp. 389-90.
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