Book Title: Sramana 1997 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ पिप्पलगच्छ का इतिहास : ११७ ११. धनु धनु धर्मदेवसुरि, सारंग रा प्रतिबोधिउ । उगमतई नितु सूरि, सुहगुरु नितु नितु प्रणमीए ।।१०।। त्रिनि भव सारंग राय, देवाएसिहिं गुरि कहीय । धूधल जग विक्खाय, पडिबोही त्रिनि भव कहीया ।।११।। पिप्पलगच्छगुर्वावलि-गुरहमाल, द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ९ ११अ.द्रष्टव्य-पिप्पलगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की सूची - लेख क्रमांक ६ १२. वही, लेखक्रमांक ६२, ६६, ६८, ७९ १३. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ९ १४. द्रष्टव्य, लेख क्रमांक १५६ १५. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ६-७ १६. संदर्भ क्रमांक ८ १७. पृथ्वीचंद्रचरित - संप० मुनि रमणीकविजय, प्राकृत ग्रन्न परिषद्, ग्रन्थांक १६, अहमदाबाद-वाराणसी १९७२ ई०सन् । १८. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णी की प्रशस्ति C.D. Dalal and L.B.Gandhi - Descriptive Catalogue of MSS in the Jaina Bhandars at Pattan.g.0.S. No. 76, Baroda - 1937 A.D. pp. 389-90. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130