Book Title: Sramana 1997 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 121
________________ श्रमण जैन जगत् आगम, अहिंसा, समता एवं प्राकृत संस्थान उदयपुर के कुछ महत्त्वपूर्ण प्रकाशन आचार्य श्री नानालाल जी म० सा० की प्रेरणा से स्थापित आगम, अहिंसा, समता और प्राकृत संस्थान, उदयपुर में अल्पसमय में ही विभिन्न आगमों के मूलानुगामी अनुवाद, पारिभाषिक शब्दों का विवेचन एवं उनके परिशिष्ट सहित संकलन का अतिमहत्त्वपूर्ण कार्य किया गया। सन् १९८८ से संस्थान ने आगमिक व्याख्याओं के अनुवाद कार्य को प्राथमिकता देने का निर्णय किया। इसी क्रम में प्रो० सागरमल जैन के निर्देशन में प्रर्कीणक ग्रन्थों के अनुवाद का कार्य प्रारम्भ किया गया। संस्थान द्वारा अब तक १४ ग्रन्थों का प्रकाशन किया गया जिनमें ९ प्रकीर्णक हैं। प्रकाशित सभी प्रकीर्णकों में अनुवाद के साथ-साथ विस्तृत भूमिका एवं उनके विषयवस्तु का भी विस्तार से विवेचन किया गया है। संस्थान के प्रकाशन : १. देविंदत्थओ (देवेन्द्रस्तव), संपा० प्रो० सागरमल जैन, अनु-डॉ० सुभाष कोठारी एवं डॉ० सुरेश सिसोदिया, व्याकरणिक विश्लेषण, प्रो०कमलचन्द सोगानी, प्रकाशन वर्ष १९८८, मूल्य ५० रुपये। २. उपासकदशांग और उसका श्रावकाचार, संपा-प्रो० सागरमल जैन, ले०-डॉ० सुभाष कोठारी, प्रकाशन वर्ष १९८८ई०, मूल्य- ६५ रुपये। 3. Equanimity Philosophy & Practice (Jainacharya Shree Nanesh), Trans lated by Late Shree H.S. Sarupriya, Ed. Prof S.M. Jain, year 1990, Price Rs. 65/-. ४. प्राकृत भारती, संपा-डॉ०प्रेमसुमन जैन एवं डॉ. सुभाष कोठारी, प्रकाशन वर्ष १९९१, मूल्य ५० रुपये। ५. तंदुलवैयालियपइण्णय (तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक), संपा०-प्रो० सागरमल जैन, अनु० डॉ० सुभाष कोठारी, प्रकाशन वर्ष १९९१, मूल्य ३५ रुपये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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