Book Title: Sramana 1997 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 117
________________ ११४: श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९७ शांतिसूरि गुणरत्नसूरि आनन्दमेरु [वि० सं०१५१३ में कालकसूरिभास तथा कल्पसूत्रआख्यान के रचनाकार] गुणसागरसूरि [वि० सं०१५१७-१५४६] प्रतिमालेख शांतिप्रभसूरि [वि० सं० १५५४-१५५९] प्रतिमालेख नरशेखरसूरि [वि०सं०१५८४ में। पार्श्वनाथपत्नीपद्मावतीहरण के रचनाकार पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा के प्रवर्तक कौन थे, यह गच्छ कब अस्तित्त्व में आया, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। जहाँ तक पिप्पलगच्छगुरु-स्तुति में वडगच्छीय शांतिसूरि द्वारा विजयसिंहसूरि आदि ८ शिष्यों को पीपलवृक्ष के नीचे आचार्यपद देने और इस प्रकार पिप्पलगच्छ के अस्तित्त्व में आने के विवरण की प्रामाणिकता का प्रश्न है और यह सत्य है कि वडगच्छ में शांतिसूरि और उनके शिष्य विजयसिंहसूरि हुए और उनके द्वारा क्रमश: रचित पृथ्वीचंद्रचरित१७ (रचनाकाल वि०सं०११६१/ई०सन् ११०५) और श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णी१८ (रचनाकाल वि०सं०११८३/ई०सन् ११२६) उपलब्ध है किन्तु इनकी प्रशस्ति में इन्हें कहीं भी पिप्पलगच्छीय नहीं कहा गया है। चूंकि किसी भी गच्छ की अवान्तर शाखायें अपने उत्पत्ति के एक-दो पीढ़ी बाद ही नामविशेष से प्रसिद्ध होती हैं अत: उक्त गुर्वावली के उपरकथित विवरण को प्रामाणिक माना जा सकता है। जैसा कि पीछे कहा जा चुका है पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्राचीनतम साक्ष्य वि०सं०१२९१ का है किन्तु वि० सं०१४६५ में एक प्रतिमालेख से ज्ञात होता है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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