Book Title: Sramana 1997 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 116
________________ पिप्पलगच्छ का इतिहास : ११३ २. सं० १५५९ फागुण सुदि ७ दिने श्रीश्रीमालज्ञातीय साहमणिकभा० अपूरवपू० । भाइआकेन स्वमातृपित्रोः श्रेयसे श्रीसंभवनाथबिंब कारितं तलाझीआ श्रीशांतिसूरिभिः प्रतिष्ठितं।। मुनि बुद्धिसागरसूरि-सम्पा०जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग-२. लेखाङ्क ३०२ प्रथम लेख में गुणरत्नसूरि के पट्टधर गणसागरसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है। पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों के आधार पर पूर्वप्रदर्शित आचार्य परम्परा की छोटी-छोटी तालिकाओं में से एक में गुणरत्नसूरि के शिष्य गुणसागरसूरि का नाम आ चुका है। शांतिसूरि गुणरत्नसूरि [वि०सं० १५०७ - १५१७] प्रतिमालेख गुणसागरसूरि [वि० सं० १५१७-१५४६] प्रतिमालेख अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित पिप्पलगच्छीय गुणसागरसूरि (वि०सं०१५१७-१५४६/प्रतिमालेख) और तालध्वजीयाशाखा के गुणसागरसूरि (वि०सं०१५२८/प्रतिमालेख) को समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर एक ही व्यक्ति मानने में कोई बाधा नहीं दिखाई देती। ठीक इसी प्रकार तालध्वजीयाशाखा के शांतिसूरि (वि०सं०१५५९/प्रतिमालेख) और पिप्पलगच्छीय शांतिप्रभसूरि (वि० सं० १५५४/ प्रतिमालेख)१४ को एक ही व्यक्ति माना जा सकता है। इसी प्रकार लेख के प्रारम्भ में साहित्यिक साक्ष्यों में उल्लिखित कालकसूरिभास (रचनाकाल वि०सं०१५१४/ई०सन् १४५७) और कल्पसूत्रआख्यान के रचनाकार पिप्पलगच्छीय आनन्दमेरु१५ के गुरु गुणरत्नसूरि भी समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर तालध्वजीयाशाखा के ही गुणसागरसूरि (वि० सं०१५१७-१५४६/ प्रतिमालेख) के गुरु गुणरत्नसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं। ठीक यही बात पार्श्वनाथपत्नीपद्मावतीहरण (रचनाकाल वि०सं०१५८४/ई०सन् १५२८) के रचनाकार पिप्पलगच्छीय नरशेखरसूरि१६ और उनके गुरु शांति (प्रभ) सूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इस प्रकार साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की जो तालिका निर्मित होती है, वह ... निनानुसार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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