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११२ :
श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९७
धर्मरत्नसूरि
धर्मतिलकसूरि
धर्मसिंहसूरि
धर्मप्रभसूरि
[वि०सं०१४७१-१४७६] पिप्पलगच्छगुरु-स्तुति के रचययिता
धर्मप्रभसूरिशिष्य [वि० सं० १४८२-१५१०] प्रतिमालेख
देवचन्द्रसूरि विजयदेवसूरि धर्मसुन्दरसूरि धर्मसूरि (वि०सं० १४८७) (वि०सं० १५०३-१५३०) (वि०सं०१५११) (वि०सं०१५२०) प्रतिमालेख प्रतिमालेख
प्रतिमालेख प्रतिमालेख
शालिभद्रसूरि
धर्मसागरसूरि (वि.सं. १५१७-२८) (वि.सं. १४८५-१५३५) प्रतिमालेख
प्रतिमालेख
धर्मप्रभसूरि (वि०सं०१५६१)
धर्मवल्लभसूरि (पिप्पलगच्छगुर्वावली में उल्लिखित)
वि०सं० १५२८ और वि०सं० १५५९ के प्रतिमालेखों में पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा का उल्लेख मिलता है। सम्भवतः सौराष्ट्र में स्थित तळाजा नामक स्थान से यह शाखा अस्तित्त्व में आयी हो। इन प्रतिमालेखों का विवरण इस प्रकार है :
१.सं० १५२८ वर्षे वैशाष (ख) विदि (वदि) सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय सं० सामल भार्या वान्ह सुत सं० हासाकेन भार्या वीजू द्वितीय भार्या सहिजलदे सुत समधर कीका युतेन श्रीचन्द्रप्रभ - चतुर्विंशतिपट्ट (:) कारित: प्र० पिप्पलगच्छे तालध्वजीय श्रीगुणरत्नसूरिपट्टे पू० श्रीगुणसागरसूरिभिः घोघा वास्तव्य श्रीः ।
-विजयधर्मसूरि-सम्पा०प्राचीनलेखसंग्रह, लेखाङ्क ४१६
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