Book Title: Sramana 1997 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 113
________________ ११०: श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९७ उक्त अभिलेखिय साक्ष्यों के आधार पर पिप्पलगच्छ की त्रिभवीयाशाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा का जो क्रम निश्चित होता है, वह इस प्रकार है : धर्मप्रभसूरि [वि०सं० १४७१ - १४७६] प्रतिमालेख धर्मशेखरसूरि [वि०सं० १४८४-१५०५] प्रतिमालेख देवचन्द्रसूरि (वि०सं०१४८७) प्रतिमालेख धर्मसुन्दरसूरि धर्मसूरि (वि०सं०१५११) प्रतिमालेख धर्मसूरि (वि०सं०१५२०) प्रतिमालेख धर्मसागरसूरि [वि०सं० १४८४ - १५३५] प्रतिमालेख धर्मप्रभसूरि [वि०सं०१५६१] प्रतिमालेख पिप्पलगच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों की पूर्व प्रदर्शित सूची में किन्हीं धर्मशेखरसूरि (वि०सं० १४८४-१५०५) का नाम आ चुका है जिन्हें समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर त्रिभवीयाशाखा के धर्मशेखरसूरि से अभिन्न माना जा सकता हैयही बात उक्त सूची में ही उल्लिखित धर्मशेखरसूरि के शिष्य विजयसेनसूरि और प्रशिष्य शालिभद्रसूरि के बारे में भी कहीं जा सकती है। इस प्रकार त्रिभवीयाशाखा के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की तालिका को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है : धर्मप्रभसूरि [वि०सं० १४७१ - १४७६] प्रतिमालेख धर्मशेखरसूरि [वि०सं० १४८२-१५१०] प्रतिमालेख देवचन्द्रसूरि विजयदेवसूरि धर्मसुन्दरसूरि धर्मसूरि (वि०सं०१४८७) (वि०सं०१५०३-१५३०) (वि०सं०१५११) (वि०सं०१५२०) प्रतिमालेख प्रतिमालेख प्रतिमालेख प्रतिमालेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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