________________
(९५) हम दोनों ही सही-गलत, फिर झगड़ा कैसा!
(९८) क्षण भर का सुख पाने को, नर सतत दुःखी!
(९६) हिंसा करती आतंकित, है अशुभ इसे झटको
(९९) क्षरित होते पत्र को देखो, क्षण को पहचानो
(९७) हों नहीं स्वप्न यदि, कैसे जी पावें व्याकुल जन
(१००) त्रुटि को 'छोटी' आग 'ज़रा सी मत मानो, फैलेगी
2) सुरेन्द्र वर्मा १०, एच०आई०जी, १-सर्कुलर रोड,
इलाहाबाद
: १३ :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org