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श्रमण / जनवरी - मार्च / १९९७
दो प्रमुख पत्नियाँ थीं । भोग की कामना से वे विचार कर रही थीं तब तक कुमार नन्दी दिखाई पड़ा। कुमार नन्दी को अपना अप्रतिम रूप दिखाकर वे छिप गईं । मुग्ध कुमार नन्दी द्वारा याचना करने पर वे प्रकट हो बोलीं पञ्चशैल द्वीप आओ और वे अदृश्य हो गईं। नाना प्रकार से प्रलाप करते हुए वह राजा के पास गया। राज- - उद्घोषक से उसने घोषणा करवायी कि उसे ( अनङ्गसेन को ) पञ्चशैल द्वीप ले जाने वाले को वह करोड़ मुद्रा देगा। एक वृद्ध नाविक तैयार हो गया । अनङ्गसेन उसके साथ नाव पर सवार होकर प्रस्थान किया। दूर जाने पर नाविक ने पूछा- क्या जल के ऊपर कुछ दिखाई दे रहा है। उसने कहा नहीं। थोड़ा और आगे जाने पर मनुष्य के सिर के प्रमाण का अत्यधिक काला बन दिखाई पड़ा। नाविक ने बताया कि धारा में स्थित यह पञ्चशैल द्वीप पर्वत का वट वृक्ष है। यह नाव जब वटवृक्ष के नीचे पहुँचे तब तुम इसकी साल पकड़कर वृक्ष पर चढ़कर बैठे रहना । सान्ध्यवेला में बहुत से विशाल पक्षी पञ्चशैल द्वीप से आयेगें। वे रात्रि वटवृक्ष पर बिताकर प्रात:काल द्वीप लौट जायेंगे। उनके पैर पकड़कर तुम वहाँ पहुँच जाओगे ।
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वृद्ध यह बता ही रहा था कि नौका वटवृक्ष के पास पहुँच गयी, कुमारनन्दी वृक्ष पर चढ़ गया। उपरोक्त रीति से जब वह पञ्चशैल द्वीप पहुँचा, दोनों यक्ष देवियों ने कहाइस अपवित्र शरीर से तुम हमारा भोग नहीं कर सकोगे। निदानपूर्वक बालमरण तप कर यहाँ उत्पन्न होकर ही हमारे साथ भोग कर सकोगे। देवियों ने उसे सुस्वादु पत्र - पुष्प, फल और जल दिया। उसके सो जाने पर उन देवियों ने सोते हुए ही हथेलियों पर रखकर उसे चम्पा नगरी में उसके भवन में रख दिया। निद्रा खुलने पर आत्मीयजनों को देखकर वह ठगा सा दोनों यक्ष देवियों का नाम लेकर प्रलाप करने लगा। लोगों के पूछने पर कहता- पञ्चशैल के विषय में जो वृत्त सुना था उसको देखा और अनुभूत किया।
श्रावक नागिल उसका समवयस्क था। नागिल ने कहा कि जिनप्रज्ञप्त धर्म का पालन करो जिससे सौधर्म आदि कल्पों में दीर्घकाल तक स्थित रहकर वैमानिक देवियों के साथ उत्तम भोग करोगे। इन अल्पकालीन स्थिति वाली वाणव्यन्तरियों के साथ भोग करने से क्या ? फिर भी उसने निदान सहित इंगिनीमरण स्वीकार किया। कालान्तर में वह पञ्चशैल द्वीप पर विद्युन्माली नामक यक्ष हुआ और हासा - प्रभासा के साथ भोग करते हुए विचरण करने लगा ।
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नागल श्रावक भी श्रमण व्रत अङ्गीकार कर, आलोचना और प्रतिक्रमण कर समय व्यतीत करते हुए अच्युतकल्प में सामानिक देव के रूप में उत्पन्न हुआ।
किसी समय नन्दीश्वर द्वीप में अष्टाह्निका की महिमा के निमित्त सभी देव एकत्रित हुए। समारोह में देवताओं द्वारा विद्युन्माली देव को पटह (नगाड़ा) बजाने का दायित्व सौंपा गया। अनिच्छुक उसे बलात् लाया गया। पटह बजाते हुए उसे नागिल देव ने देखा। पूर्व जन्म के अनुराग के कारण प्रतिबोध देने हेतु नागिल देव उसके समीप आकर पूछा
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