Book Title: Sramana 1997 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 51
________________ ४८ : श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९७ ही अपने प्रति किये गये अपराधों को क्षमा कर सकते हैं और स्वकृत अपराधों के लिए दूसरों से क्षमा माँग सकते हैं। उपर्युक्त दृष्टान्तों के अतिरिक्त कषाय के दुष्परिणाम को बताने वाले चार दृष्टान्त-सङ्केत प्राप्त होते हैं। इनमें अनन्तानुबन्धी क्रोध कषाय से सम्बन्धित हल जोतने वाले मरुत, अनन्तानुबन्धी मानविषयक श्रेष्ठिपुत्री अच्चंकारिय भट्टा, अत्यधिक माया कषाय से युक्त पाण्डुरार्या तथा लोभी श्रमण आर्यमङ्ग के दृष्टान्त प्राप्त होते हैं। इस नियुक्ति में सङ्केतित दृष्टान्तों को इसप्रकार सूचीबद्ध कर सकते हैं : १. अधिकरण अर्थात् कलह सम्बन्धी दृष्टान्त। 1. द्विरुक्तक वृत्तान्त, II. चम्पाकुमारनन्दी, III. भृत्य द्रमक, २. कषाय से सम्बन्धित दृष्टान्त। I. क्रोध कषायविषयक मरुत दृष्टान्त, II. मानकषाय विषयक अच्चंकारिय भट्टा दृष्टान्त। III. माया कषाय विषयक पाण्डुरार्या दृष्टान्त, IV. लोभ कषाय विषयक आर्य मङ्ग दृष्टान्त। निर्यक्ति साहित्य में कथाओं को, उनके प्रमुख पात्रों के नाम-निर्देश के साथ एक, या दो या कभी-कभी तीन गाथाओं में कथा के मुख्य बिन्दुओं के कथन द्वारा इङ्गित किया गया है। कथा का पूर्ण स्वरूप परवर्ती साहित्य से ही ज्ञात हो पाता है, वह भी मुख्यत: चर्णि साहित्य से, निशीथभाष्यचूर्णि और दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि' में उपर्युक्त कथायें उक्त क्रम से उपलब्ध हैं। निशीथभाष्यचूर्णि में यह कथा विस्तृत रूप में वर्णित है जबकि दशाश्रुतस्कन्ध चूर्णि में ये कथायें संक्षिप्त रूप में वर्णित हैं। इन दोनों चूर्णियों के अतिरिक्त यथाप्रसङ्ग बृहत्कल्पभाष्य और आवश्यकचूर्णि' में भी ये कथायें प्राप्त होती हैं। उक्त चूर्णियों में प्राप्त विवरणों के आधार पर ही इन कथाओं का स्वरूप प्रस्तुत किया जा रहा है १. अधिकरण सम्बन्धी द्विरुक्तक दृष्टान्त° एगबइल्ला भंडी पासह तुम्भे डज्झ खलहाणे । हरणे झामणजत्ता, भाणगमल्लेण घोसणया ।।९१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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