Book Title: Sramana 1997 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 72
________________ अणगार वन्दना बत्तीसी मुनी जिनमत में । घोर काल दियो घेर, 1 हणात है हेर हेर, साही सत समसेर, जम हुं कुं कीयो जेर, चतुराइ चित में । भगवंत वैणभेर, बजावत घेर- घेर, ऐसा अणगार इस गछ सिव गति में ।। २५ । । परम धरम पाम, वरजी ने भाव वाम । हणत ही यारी हाम, उर तजे दाम कुं । । गछत नगर गाम, थिर नहीं एक ठाम, जतनां सु राखे जाम, कांनी करै काम कुं । घोर नारकी री धाम, तप करी टालें ताम, निस दिन सीर नाम, सुमरत श्याम कुं । सूर पणे संग्राम, करीने सुधारे काम, ऐसा अणगार इसि मध्यावे शिवधाम कुं ।। २६ । । कुमत जंजीर काट, वहे शिवपुर वाट थिरकनें नर थाट, पंथ धरी तजे घट, आणै नहीं ओचाट, उरमत देइ दाट, माया थिरकने नर थाट, हीयो ताको हेम है । खिमता छडी नो साट, कर्म रिपु देवे काट ऐसे अणगार ताकुं, मेरी तसलीम है ।। २७ ।। सहु मेट दइ संक, फय करी फंक, वरजीने मन वंक, तज दीनी रीसकुं । परहर काम पंक, फेर नहीं करे पंक रात दिन करे रंक, काटे है कलेसकुं । अरीतणो खोवे अंक, टालो नहीं करे टंक, देत है मुगत डंक, जपी जगदीस कुं । अंजन मंजन अंख, सोभे जिम उट्ठ संख, ऐसा अणगार ताकुं, पाय धरु सीसकुं ।। २८ । । समकत लहे सुध, वहोत घट भइ बुध, रिंट जिम तजी रिध, ममता मिटाइने । दिल साफ जेम दूध गिरवा गुणाएनिध, सुरत असीम है । परगट सेवें घट निर्मल नेम है । दया तणा माट • " " Jain Education International For Private & Personal Use Only : ६९ www.jainelibrary.org

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