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८ :
(५५)
भय ग्रसित जीवन विरोधी है मरण- हिंसा
(५६)
भले तर्क का द्वार बंद हो, आँख झरे करुणा
(५७)
भौतिक सुख के लिए भटकना
है पाना दुःख
(५८)
मन द्विविधा में रहे अगर तो समता साधो
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(५९)
मन प्रमत्त करता मनमानी,
कैसा अज्ञानी?
(६०)
मन में पड़ी सदियों पुरानी, ये ग्रंथि है- हिंसा
(६१)
मरता वो है, जो प्रमत्त है, यत्न नहीं करता
(६२)
मानव नेत्रों उससे सूर्य
चमक पाता
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