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(३९) दुःख हरे जो दूसरों का, पुरुष होता है वही
(४३) न बाँधो रिक्त मंसूबे, चलोगे तो मिलेंगे रास्ते
(४०) दृष्टियाँ होती अनेक, निरर्थक हैं पूर्व-ग्रह
(४४)
नहीं गया जो पहना-ओढा, वस्त्र भला वो कैसा!
(४१) द्वन्द्व में मन फँसा हो यदि, करे कैसे स्मरण?
(४५)
नहीं चाहता दुःख कोई भी, सुख सबको प्यारा
(४२) धरती पर यदि टिके रहो तो, नभ छू लोगे
(४६) नहीं मिलेगा ईश्वर बना-बनाया बनना होगा
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