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(३१) जोड़े कितने साज औ' सामाँ, सधे नहीं लेकिन
(३५) दिया दूसरों ने जो मान, उसका क्या अभिमान!
(३२)
तार बात के टूट न जाएँ, मत तानों इतना
(३६) दुःखदायी है परिमार्जित पर करता दुःख
(३३) तुतलाते ये बच्चों के स्वर, वंशी से बजते हैं
(३७) दुःख देते हैं स्वयं परस्पर ही आतुर जन
(३४) तू स्वयं ही मित्र अपना, किसे खोजता फिरे
(३८)
दुःख-सुख के बीच पलता द्वन्द्व, पार जाना है
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