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(७१)
मौत पर है एक तीखी टिप्पणी यह जिन्दगी!
(७५) लोग सारे जो जरुरतमन्द हैं, तेरे पड़ोसी
(७२) यदि शरीर करता शरारतें कौन अजूबा!
(७६) विरत हुआ जो आसक्ति से, वही कुशल होता
(७३) रहता नहीं भूखा, बाँट जो खाता काक समान
(७७) विषय भोग सब कष्ट-विहीन वृक्ष केले से!
(७४)
लाभ-अलाभ तो होता ही रहता, क्यों हर्ष-शोक!
(७८) विषय सभी संसार हैं, विषयरूप संसार!
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