Book Title: Sramana 1997 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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२६ :
श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९७
खीरु विरालिय कंदं दिणसत्तं पियए थण वेयणा हरइ। कुरंटउ जड दंति चव्विव्वि लेविए अहवा ।। २१।। दुधु वढ़इ गोवरि लिवि तणु सुक्का झडेइ वरुणतरुपत्तं । घिय सहियं उवढिय पनियकाए तणु थणणो दोसयं होहिं ।।२२।। णीलोप्पल भहुजट्ठी अभया पीसेवि सीयल जलेण । जा पियइ सत्तरत्ते गम्भ धारेइ पडमाणं ।। २३।। लंगलियाएकंदं पीसिवि णाहीय लेवणे दिण्णे। जा होइगूढ़गम्भा सा सिग्धं पसवइ सुहेण ।। २४।। अपमग्गा दहि पीए वंझाया सुगम्भु धीरेइ । तं पत्ते पयमाणे पयरं वारे इ णिम्भंतं ।। २५।। बडजड अग्गे कोपल सुहम रत्ताई महुधिए णारी। पुरिसालिंगण काले सुहदिणि पाणे वहुसुवा होहिं ।।२६।। सिय चंदण तंदुल जलि पाणेण णारीय पयरुवारेइ । आम पए दिण सत्तं भत्तं भुत्तएण धारए गम्भं ।। २७।।
इति योगनिधाने स्त्रीगर्भोऽध्यायः
सियगिरि कणिय मूलं वीयं वा तोय पीसेय । णासे दिण्णं पाडिवि सिंभं सणिवाय णिवारणं कुणइ ।।२८।। तेहुव महुवा सारं हय गंधा इंदवारुणी मूलं । हरिणा पिट्ठो णासं पण्णंतो हरइ सणवायं ।। २९।। विस्साणलु सुगुरी चं पुक्खर मूलं च लहुवरिंगिणिया । मरुपित्तं सणवायं णासइ चउ कत्थ पाणेण ।।३०।। णरमुत्ते गोमुत्ते छायलमुत्तेण तयतयं सत्ते। णिंवय खंडं भेड विच्छाया मुक्कं च कारेह ।।३१।। वासि कपूरिण परियं सणिवाए गहिय उठि जमकाले । घसि जलणासं दिण्णं सोवि णरो भल्लओ होइ ।।३२।। बब्बूलमूल कडिया कणे धरियावि सव्व कालम्मि । णासेइ हरिस दोसो जह तिमिरोतरणि किरणेहि ।। ३३ ।। घोसंडियफल पणए महुणा सह लेवियाई हरिसाइं । गलिवि पडंति णिम्भंतं तुसार रासी जहागिंभे ।। ३४।। पंचंग देवदाली वफ्फिवि तोएण वाफ सेएण । सुक्किवि पडंति हरिसा फलणि वहंजह कुवाएण ।।३५।।
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