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श्रमण/जनवरी-मार्च १९९७
१४ :
अहिंसा द्वारा तनाव मुक्ति
जैन दर्शन का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है— अहिंसा । व्यक्तिगत तनावों के साथ-साथ विश्वव्यापी तनाव भी इससे दूर हो सकते हैं। अहिंसा से दया, दान, परोपकार, सहनशीलता, सहिष्णुता, प्रेम की उदात्त भावनाएं जागृत होती हैं। अहिंसा द्वारा सम्पूर्ण विश्व में एकता और शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो सकता है। आज महात्मा गांधी और उनकी अहिंसा विश्वविख्यात है।
अपरिग्रह से तनाव मुक्ति
अहिंसा को ग्रहण करने वाला परिग्रह से स्वतः मुक्त हो जाता है। अपरिग्रह की भावना से तृष्णा शांत हो जाती है, जिससे सन्तोष प्राप्त होता है और स्वतः ही तनाव समाप्त हो जाते हैं क्योंकि अपरिग्रह का अर्थ ही है- पदार्थ के प्रति ममत्व या आसक्ति का न होना । वस्तुतः ममत्व या मूर्च्छा भाव से संग्रह करना परिग्रह कहलाता है अर्थात् मूर्च्छा ही परिग्रह है । ५१ परिग्रह को जैन आगम में एक ऐसा वृक्ष माना गया है, जिसके स्कन्ध अर्थात् तने लोभ, क्लेश और कषाय हैं । ५२ अतः अपरिग्रह की भावना व्यक्ति को तनाव रहित कर सकती है।
अनेकान्त द्वारा तनाव मुक्ति
अनेकान्त के सिद्धान्त से दुराग्रह समाप्त होते हैं । इस सिद्धान्त से एक दूसरे को समझने का प्रयास करने से तनाव दूर होंगे। इसी सन्दर्भ में साध्वी कनकप्रभा का कहना है- " वर्तमान के सन्दर्भ में भी स्यादवाद की अर्हता निर्विवाद है। इसमें वैयक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सभी समस्याओं का सुन्दर समाधान सन्निहित है। जैन दर्शन की यह मान्यता सम्पूर्ण विश्व के लिए एक वैज्ञानिक देन है । ५३ अनेकान्तिक दृष्टि का दैनिक जीवन में यदि व्यवहार होने लगे तो निश्चय ही व्यक्ति, समाज व राष्ट्र में व्याप्त तनाव- द्वन्द समाप्त होकर समन्वय, स्नेह, सद्भावना, सहिष्णुता तथा उपशम-मृदुता जैसे उदात्त गुणों का प्रादुर्भाव होगा, जो निश्चय ही जीवन दर्शन को एक नई दिशा देगा।
सादा जीवन उच्च विचार से तनाव मुक्ति
प्रत्येक व्यक्ति उच्चस्तरीय जीवन जीना चाहता है। अपने से ऊंचे स्तर वाले लोगों की नकल करने से इच्छाएं बढ़ती हैं, लेकिन उनकी पूर्ति न कर पाने के कारण वह मानसिक तनावों से ग्रसित रहता है। अतः सादा जीवन जीने से इन तनावों से मुक्त हुआ जा सकता है।
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