Book Title: Sramana 1997 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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१८
श्रमण / जनवरी-मार्च १९९७
१५. कोहं माणं च मायं च लोभं च पाववड्डणं ।
वमे चत्तारि दोसे उ इच्छंतो हियमप्पणो ।।
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दशवैकालिक, वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता, वि०संवत् २०२०, ८ / ३६ |
१६. माया- लोभेहिंतो रागो भवति ।
कोह माणेहिं तो दोसो भवति । । - निशीथ चूर्णि, गाथा १३२ ।
उपाध्याय अमरमुनि, सूक्ति त्रिवेणी, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, प्रथम संस्करण १९६८ ई० सन्, पृष्ठ २२२ ।
१७. उवसमेण हणे कोहं माणं भद्दवया जिणे ।
मायं चज्जवभावेण लोभं संतोसओ जिणे ||
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दशवैकालिक, आचार्य तुलसी, कलकत्ता, विक्रम संवत् २०२०, ८/३८| १८. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश (खण्ड- २), जिनेन्द्र वर्णी, दिल्ली, पृष्ठ- ३४ । १९. इच्छा हु आगास समाअणंतिया |
उत्तराध्ययनसूत्र, साध्वी श्री चन्दना, वीरायतन प्रकाशन, आगरा, प्रथम संस्करण १९७२, ९/४८ ।
२०. जहा लाहो तहा लहो, लाहा लोहो पवड्डई ।
दो मास कपं कज्जं, कोडिए वि न निट्ठियं ।। उत्तराध्ययनसूत्र, साध्वी श्री चन्दना, आगरा, ८/१७। २१. कोहो पीई पणासेइ, माणो विणय नासणो ।
माया मित्ताणि नासेइ, लोभो सव्व विणासणो || दशवैकालिक, आचार्य तुलसी, कलकत्ता, ८ / ३७|
२२. साध्वी कनकप्रभा, महावीर व्यक्तित्व और विचार, आदर्श साहित्य संघ, चुरू, पृष्ठ ८० ।
२३. डॉ० माता प्रसाद गुप्त, कबीर ग्रन्थावली- साखी, प्रामाणिक प्रकाशन, आगरा, प्रथम संस्करण, १९६८, ५३/१।
२४. युवाचार्य महाप्रज्ञ, प्रेक्षाध्यान : कायोत्सर्ग, लाडनूं, पृष्ठ १८
२५. तत्त्वार्थसूत्र, पं० सुखलाल संघवी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, तृतीय संस्करण १९७६, ९/२९।
२६. हिंसाऽनृतस्तेय विषय संरक्षणेभ्यो रौद्रभविरतदेशविरतयो; ।।
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