Book Title: Siddhantasara Dipak
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 14
________________ विशद वर्णन करने के लिये ग्रन्थकर्ता ने गद्यभाग को स्वीकृत किया है। उनकी इस शैली से जिज्ञासुजन सरलता से प्रतिपाद्य वस्तु को हृदयंगत कर लेते हैं। ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय यद्यपि विषय सूची के द्वारा स्पष्ट है तथापि अधिकार क्रमसे उसका संक्षिप्त दिग्दर्शन करना आवश्यक लगता है । यह ग्रन्थ १६ अधिकारों में पूर्ण हुअा है प्रथम अधिकार में ९५ श्लोक हैं जिनमें मङ्गलाचरण के अतिरिक्त लोक के प्राकार आदि का वर्णन है । द्वितीयाधिकार में १२५ दलोक हैं जिनमें अधोलोक के अन्तर्गत श्वभ्रलोक का वर्णन है । नरकों के प्रस्तार तथा उन में रहने वाले नारकियों को अवगाहना और प्रायुका वर्णन है । तृतीयाधिकार में १२३ श्लोक हैं जिनमें नारकियों के दु:म्वों का लोम हर्षक वर्णन है। पढ़ते पढ़ते पाठक का चित्त द्रवीभूत हो जाता है, शरीर रोमाञ्चित हो जाता है और नेत्रोंसे अश्र धारा प्रवाहित होने लगती है। चतुर्थाधिकार में ११६ पद्य हैं जिनमें मध्यलोक के अन्तर्गत जम्बूद्वीप के छह कुलाचलों, छह सरोवरों तथा उनमें रहनेवाली नी आदि देव कुमारियों की विभूति का वर्णन है। पञ्चमाधिकार में १४७ श्लोक हैं जिनमें चौदह महानदियों, विजयाओं, वृषभाचलों और नाभिगिरि पर्वतों का वर्णन है । षष्टाधिकार में ११० श्लोक हैं जिनमें सुदर्शनमेरु, भद्रशाल आदि बन और जिन चैत्यालयों का वर्णन है । सप्तमाधिकार में २६१ श्लोक हैं जिनमें मेज युद, उत्तर र कादिले, नकवी की दिग्विजय और विभूति का वर्णन है, अष्टमाधिकार में विदेह क्षेत्रस्थ समस्त देशों का वर्णन है। विदेह क्षेत्र में मोक्ष का द्वार सदा खुला रहता है अतः उसकी प्रशंसा करते हुए ग्रन्थकर्ता ने लिखा हैपत्रोच्चः पदसिद्धये सुकृतिनो जन्माश्रयन्तेऽमरा, ___ यस्मान्मुक्तिपदं प्रयान्ति तपसा केचिच्च नाकं अतः । तीर्थेशा गणनायकाश्च गणिनः श्री पाठकाः साधवः, सवाडया विहन्ति सोऽत्र जयतानित्यो विदेहो गुणैः ॥१९०॥ जहां पर पुण्यशाली देव मोक्षपद की प्राप्ति के लिये जन्म लेते हैं, जहां से कितने ही भन्यजन तपके द्वारा मुक्ति को प्राप्त करते हैं, कितने ही व्रतों के द्वारा स्वर्ग जाते हैं और जहां तीर्थकर, गणधर, प्राचार्य, उपाध्याय तथा साधु परमेष्ठी संघ सहित विहार करते हैं वह विदेह क्षेत्र इस जगत् में अपने गुणों के द्वारा निरन्तर जयवन्त रहे। नवमाधिकार में ३६७ श्लोक हैं जिनमें प्रवसर्पिणी तथा उत्सपिणी के छह कालों और उनमें होनेवाले कुलकरों, तीर्थंकरों, चक्रवतियों, बलभद्रों, नारायणों, प्रतिनारायणों, रुद्रों और नारदों का वर्णन किया गया है। दशमाधिकार में ४२५ श्लोक हैं जिनमें मध्यलोक का सुविस्तृत वर्णन है । एकादशाधिकार में २१६ श्लोक हैं जिनमें जीवों के कुल, काय, योनि, प्रायु संख्या तथा अल्पबहुत्व का वर्णन है। द्वादशा

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