Book Title: Siddhantasara Dipak
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 13
________________ प्रस्तावना सिद्धान्तसारदोषक अपर नाम त्रिलोकसार दीपक ग्रन्थ लोकानुयोग का वर्णन करने वाले संस्कृत ग्रन्थों में परवर्ती होने पर भी भाषा की सरलता और प्रमेय की बहुलता से श्रेष्ठतम ग्रन्थ माना जाता है । तिलोयपत्ति तथा त्रिलोकसार प्रादि प्राकृत भाषा के ग्रन्थ गणित की दुरूहता के कारण जब जनसाधारण के बुद्धिगम्य नहीं रहे तब भट्टारक श्री सकल कोति प्राचार्य ने इस ग्रन्थ की रचना कर जन साधारण के लिये लोक विषयक ग्रन्थ प्रस्तुत किया। इसमें गणित के दुरूह स्थलों को या तो छुपा नहीं गया है और छुपा गया है तो उन्हें सरलतम पद्धति से प्रस्तुत किया गया है। सिद्धान्तसारदीपक के अाधार का वर्णन करते हुए ग्रन्थान्त में लिखा है“एष ग्रन्थवरो जिनेन्द्र मखजः सिद्धान्त सारादिक-- दीपोऽनेकविधस्त्रिलोकसकलप्रद्योतने दीपकः । नानाशास्त्रपरान् विलोक्य रचितस्त्रलोक्यसारादिकान् भक्त्या श्रीसकलाविकीर्तिगणिना संघगुणनन्दतु ॥१०२।। यह सिद्धान्तसार दीपक नाम का ग्रन्थ अर्थ की अपेक्षा श्री जिनेन्द्र के मुख से समृद्भूत है, विविध प्रमेयों का वर्णन करने से अनेक प्रकार का है, तीन लोक की समस्त वस्तुओं को प्रकाशित करने के लिए दीपक के समान है तथा त्रिलोकसार प्रादि अनेक उत्तम शास्त्रों का अवलोकन कर श्री सकल कीति गएी के द्वारा भक्ति पूर्वक रचा गया है, अनेक गुण समूहों से यह ग्रन्थ समृद्धिमान हो। ग्रन्थ के पाशीर्वचन में ग्रन्थकर्ता ने लिखा है 'सिद्धान्तसारार्थ निरूपणाच्छोसिद्धान्तसारार्थभृतो हि सार्थः ।। सिद्धान्तसारादिक वीपकोऽयं प्रन्थो धरिभ्यां जयतात् स्वसई' ॥१०६॥ जिनागम के सारभूत अर्थ का निरूपण करने से यह ग्रन्थ सिद्धान्त के सारभूत अर्थों से भरा हुआ है तथा सिद्धान्तसार दीपक' इस सार्थक नाम को धारण करनेवाला है । अपने संघों के द्वारा यह ग्रन्थ पृथिवी पर जयवन्त प्रवर्ते । सिद्धान्तसार दीपक ग्रन्थ का परिमाण : इस ग्रन्थ का परिमारण ग्रन्थकर्ता ने स्वयं ४५१६ अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण लिखा है। ग्रन्थ के १६ अधिकारों में ३१५८ पद्य हैं । इन पद्यों में कुछ पद्य शार्दूल विक्रीडित तथा इन्द्रवजा भादि विविध छन्दों में भी बिचित हैं । शेष प्रमाण की पूर्ति गद्यभाग से होती है। किसी वस्तु का सुविस्तृत और

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