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दोहा--सूक्ष्मादिक गुण सहित है, कर्म रहित निररोग । सकल सिद्ध सो थापहूँ, मिटे उपद्रव योग ॥२॥
इति यंत्रस्थापन। अथाष्टक ।
गीता छन्द। अति नमूता तिहुँ योगमें निज भक्ति निर्मल भावहीं। यह गुप्त जल प्रत्यक्ष निर्मल सलिल तीरथ लावहीं॥ यह उभय द्रव्य संयोग त्रिभुवन पूज्य पूज रचावहीं। द्व अर्द्धशत षट अधिक नाम उचार विरद सु गावहीं॥ ॐ ह्री सिद्धपरमेष्ठिने २:६ गुण सहित श्री समत्तणाण दमण वीयं मुहमतहेव अवग्गाहणं प्रगुरुल घुमवावाह जन्मजरारोगविनाशनाय जल नि ॥१॥ अति वास विषय न वासनायुत मलय शील सुभावहीं। अरु चंदनादि सुगन्ध द्रव्य मनोग्य प्राशुक लावहीं।
यह उभय० ॥ अर्द्धशत षट०॥ ॐ ह्रीं सिद्धपरमेष्ठिने २५६ गुण सहित श्री समत्तणाणदसण वीयं मुहमत्तहेव
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