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पारस लोहा हेम करि, तुम भव बंध निवार। मोक्ष हेतु तुम श्रेष्ठ गुरण, धारत हो हितकारी प म ९१६
तीन लोक प्राताप हर, मुनि-मन-मोदन चन्द । सिद्ध लोक प्रिय अवतार हो, पाऊमुख तुम चंद रानीपमा Part 11 । मन मोहन सोहन महा, धार रूप अनुप । दरशत मन प्रानंद हो, पायो निज रस कूप भी TETTE भव भव दाह निवार कर, शीतल भए जिनेश । मानो अमृत सीचियो, पूजत सदा सुरेश पाई गोगमापार म.प , तीर्थकर श्रेयांस हम देहो श्री शुम भाग।
श्रीसु अनंत चतुष्ट हो, और सकल दुरभाग 1 ARITAL GE. त्रिस नाड़ी या लोकमें, तुम ही पूज्य प्रधान ।
तमको पूजत भावसो, पाऊं मुख निरवाण गान TT Tran " द्रव्य भाव मल रहित है, महा मुनिनके नाय । इन्द्रादिक पूजत सदा, नमू पदांबुज माय || परिमापार मापा १२॥
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