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शील स्वभाव सुजन्म लै, अन्त समय निरवारण। सिद्ध० भविजन आनंदकार है, सर्व कलुषता हान ॥ॐ ह्रींअहं शांतिजिनायनमाअध्या१॥ वि० धरम रूप अवतार हो, लोक पापको भार ।
मृतक स्थल पहुँचाइयो,सुलभकियोसुखकार ह्रीं ग्रह वृषमाय नम. अयं ।६३० अन्तर बाहिर शत्रुको, निमिष पर नहीं जोर। विजय लक्षमी नाथ हो, पूजू द्वय कर जोर ॥ॐह्रीं प्रहं अजिताय नमःअध्य||६२१॥ तीन लोक आनद हो, श्रेष्ठ जन्म तुम होत । स्वर्ग मोक्ष दातार हो, पावत नहीं कुमोत ॥ॐ ह्रीं महं समवाय नम.अयं ।६२२। परम सुखी तुम आप हो, पर आनंद कराय। तमको पूजत भावसों, मोक्ष लक्षमी पाय ॥ ह्रीं अहं मभिनन्दनाय नमःप्रया६२३ सब कुवादि एकांतको, नाश कियो छिन माहि। भविजन मन संशयहरण, और लोकमें नाहिं॥ ह्रींसह सुमतयेनम.मध्य|६२४॥ भविजन मधुकर कमल हो, धरत सुगन्ध अपार । तीन लोकमे विस्तरी, सुयश नामको धार ॥ ह्रींमहं पचप्रमायनम अर्घ्य ।६२५॥
प्रष्टम
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