Book Title: Siddhachakra Vidhan
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur
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। तेरह विधि चारित्रके, तुम हो पूरण शूर । सिद्ध
निजपुरुषारथकरिलियो,शिवपुर आनंद पूर॥प्रोह्रीग्रह त्रयोदशचारित्रपूर्णताय नमः । निज सुखमें अन्तर नहीं, परसो हानि न होय । स्वस्थरूप परदेश जिन, तिन पूजत हूँ सोय ॥ ह्रीमहंपच्छेजिनायनमःअध्यं ॥१७॥ निज पूजनतें देत हो, शिव संपति अधिकाय । याते पुजन योग्य हो, पूजूमन वच काय॥ॐ ह्रींप्रहं शिवदाश्रीजिनाय नम अध्यं ॥१७३३
मोह महा परचण्ड बल, सके न तुमको जीत। ३ नम तुम्हे जयवंत हो, धार सु उरमें प्रीत॥ॐह्री अहं प्रजयजिनाय नमःमय 1९७४ १ यग विधानमे जजत ही, आप मिले निधि रूप। ६ तुमसमान नहींऔर धन,हरत दरिद दुखकूप ॥ॐ ह्रींप्रहं याज्याय नम मध्य। १७॥
लोकोत्तर सम्पद विभव, है सर्वस्व अघाय । तमसे अधिक न औरहै,सुख विभूतिशिवराय॥ॐ ह्रीमहं मनपरिग्रहायनम प्रय॑ । तुमरो अाह्वानन यजन, प्रासुक विधिसे योग । त्रिजगप्रमोलिक निधिसही,देतपर्म सुखभोगह्री प्रहं अनर्घहेतवेनम.मध्यं ।९७७ १
टम

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