Book Title: Siddhachakra Vidhan
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 437
________________ जय स्वयंबुद्ध संकल्प टार, जय स्वयं शुद्ध रागादि जार। जय स्वय स्वगुरण प्राचार धार, जय स्वयं सुखी अक्षय अपार ॥५॥ जय स्वयं चतुष्टय राजमान, जय स्वयं अनन्त सुगुरण निधान ।। जय स्वयं स्वस्थ सुस्थिर अयोग, जय स्वयं स्वरूप मनोग योग ॥६॥ जय स्वयं स्वच्छ निज ज्ञान पूर, जय स्वयं वीर्य रिपु वज चर।। जय महामुनिन आराध्य जान, जय निपुरणमती तत्त्वज्ञ मान ॥७॥ जय सन्तनि मन आनन्दकार, जय सज्जन चित वल्लभ अपार । जय सुरगण गावत हर्ष पाय,जय कवि यश कथन न करि अघाय॥८॥ तुम महा तीर्थ भवि तरण हेत, तुम महाधर्म उद्धार देत । । तुम महामंत्र विष विघ्न जार, अघ रोग रसायन कहो सार ॥६॥ । तुम महाशास्त्रका मूल ज्ञेय, तुम महा तत्त्व हो उपादेय। प्रष्टम | तिहुँ लोक महामंगल सु रूप, लोकत्रय सर्वोत्तम अनूप ॥१०॥ पूजा तिहुँ लोक शरण अघ-हर महान, भवि देत परम पद सुख निधान । १४०३ । संसार महासागर प्रथाह, नित जन्म मरण धारा प्रवाह ॥११॥ -wwwnwwwnnnwunarnirnirun

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