Book Title: Siddhachakra Vidhan
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 441
________________ सिद्ध० वि० ४०७ 1 -: भजन :-- श्री सिद्धचक्र का पाठ करो दिन आठ, ठाठ से प्रारणी, फल पायो मैना राणी ॥ टेक ॥। मैना सुन्दरि इक नारी थी, कोढी पति लखि दुखिया थी । नही पडे चैन दिन रैन व्यथित अकुलानी ।। फल पायो० ॥ जो पति का कष्ट मिटाऊ गी, तो उभय लोक सुख पाऊ गी । नहिं अजागलस्तनवत् निष्फल जिन्दगानी || फल पायो० ।। इक दिवस गई जिन मन्दिर मे, दर्शन करि अति हर्षी उरमे । फिर लखे साधु निग्रंथ दिगम्बर ज्ञानी ॥ फल पायो० ॥ बैठी मुनिको करि नमस्कार, निज निन्दा करती बार बार । भरि अश्रु नयन कही मुनि सो दुखद कहानी || फल पायो० ॥ बोले मुनि पुत्री धैर्य धरो, श्री सिद्धचक्र का पाठ करो । ह रहे कुष्ठ की तन मे नाम निशानी ।। फल पायो० ॥ सुनि साघु वचन हर्षी मैना, नहि होय झूठ मुनि के बैना । करि के श्रद्धा श्री सिद्धचक्र की ठानी || फल पयो० ॥ जब पर्व अठाई आया है, उत्सवयुत पाठ कराया है । सब के तन छिडका यन्त्र हवन का पानी ।। फल पायो० ॥ अष्टम पूजा ४०७

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