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सिद्ध०
वि०
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-: भजन :--
श्री सिद्धचक्र का पाठ करो दिन आठ, ठाठ से प्रारणी, फल पायो मैना राणी ॥ टेक ॥। मैना सुन्दरि इक नारी थी, कोढी पति लखि दुखिया थी ।
नही पडे चैन दिन रैन व्यथित अकुलानी ।। फल पायो० ॥
जो पति का कष्ट मिटाऊ गी, तो उभय लोक सुख पाऊ गी ।
नहिं अजागलस्तनवत् निष्फल जिन्दगानी || फल पायो० ।।
इक दिवस गई जिन मन्दिर मे, दर्शन करि अति हर्षी उरमे ।
फिर लखे साधु निग्रंथ दिगम्बर ज्ञानी ॥ फल पायो० ॥
बैठी मुनिको करि नमस्कार, निज निन्दा करती बार बार ।
भरि अश्रु नयन कही मुनि सो दुखद कहानी || फल पायो० ॥
बोले मुनि पुत्री धैर्य धरो, श्री सिद्धचक्र का पाठ करो ।
ह रहे कुष्ठ की तन मे नाम निशानी ।। फल पायो० ॥
सुनि साघु वचन हर्षी मैना, नहि होय झूठ मुनि के बैना ।
करि के श्रद्धा श्री सिद्धचक्र की ठानी || फल पयो० ॥
जब पर्व अठाई आया है, उत्सवयुत पाठ कराया है ।
सब के तन छिडका यन्त्र हवन का पानी ।। फल पायो० ॥
अष्टम
पूजा
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