Book Title: Siddhachakra Vidhan
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 440
________________ सिद्ध वि० ४०६ तुम अशरीर शुद्र चिन्मूरति स्वातम रसभोगी। तुम्हे जपे आचार्योपाध्याय सर्वसाधुयोगी ।। जय.॥ ब्रह्मा विष्णु महेश सुरेश गणेश तुम्हे घ्यावें। भवि-अलि तुम चरणावुज सेवत निर्भयपद पावे ॥ जय.॥ सकट टारन अघम उघारन-भवसागर तरणा। अष्ट दुष्ट रिपु कर्म नष्ट करि जन्म मरण हरणा ।। जय ।। दीन दुखी असमर्थ दरिद्री निर्धन तन रोगी । सिद्धचक्र को ध्याय भये ते सुर नर सुख भोगी ॥ जय ।। डाकिनि शाकिनि भूत पिशाचिनि व्यन्तर उपसर्गा। नामलेत भगिजाय छिनकमे सब देवीदुर्गा ॥ जय ॥ वन रन शत्रु अग्निजल पर्वत विषधर पचानन । मिटे सकल भय कष्ट करैजे सिद्धचक्र सुमिरन ।। जय.।। मैनासुन्दरि कियो पाठ यह पर्व अठाइनिमे । पति युत सात शतक कोढिन का गया कुष्ट छिनमें ।जय ।। कार्तिक फागुन साढ आठ दिन सिद्धचक्र पूजा। कर शुद्ध भावो से 'मक्खन' लहैं न भव दूजा ।। जय.॥ अष्टम पूजा

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