Book Title: Siddhachakra Vidhan
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 425
________________ DU सिद्ध वि० कहै हुवे हो नेमस, परमाराध्य अनादि । तुम महातमा जगतके, और कुदेव कुवादि ॥ीप उदिनोस्तिमात्मानम प्रय तत्त्वज्ञान अनुकूल सब, शब्द प्रयोग विचार। तिसके तुम अध्याय हो, अर्थ प्रकाशन हार हीपहारमाननियनमप्रयं । ना काहूँ सो जन्म हो, ना काहू सो नाश। ३६१ पपरकाशीपई प्रतिमाय नम पा९५२ ६ अप्रमारग अत्यन्त है, तुम सन्मति परकाश । तेजरूप उत्सवमई, पाप-तिमिरको नाश ॥ॐ ह्री प्रहं प्रमेयमहिम्ने नम अयं ॥९५३ रागादिक मलको हरै, तनक नहीं अनवास। महाविशुद्ध अत्यंत है, हरो पाप-अहि-डांस॥ॐहीं पह प्रत्यन्तशुद्धायनम प्रय|९५४ } स्वयं सिद्ध भरतार हो, शिव कामिनिके संग। प्रष्टम रमण भाव निज योगमे, मानो अति आनंद ॥ॐ ह्रींग्रह मिद्धिम्बय वरायनम मध्य पूजा ६ विविध प्रकार न धरत है, है अजन्म अव्यक्त। सक्षम सिद्ध समान है, स्वयं स्वभाव सव्यक्त होगह मिदानुसार नम वयं .. ranuarum anumararu

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