Book Title: Siddhachakra Vidhan
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 423
________________ कर्म प्रबन्ध सुघन पटल, ताको छायानवार । सिद्ध रविघन ज्योति प्रकट भई, पूरणता विधि धारीय गायन वि० निज प्रदेशमें यिर सदा, योग निमित्त निवार। ३८६३ अचल शिवालयके विष,तिष्ठ सिद्ध अपार पहं देर : सन्त नमन प्रिय हो अती, सज्जन वल्लभ जान। है जनि जन मन प्यारे सही, नमत होतकल्याणीप Na Times काल अनन्तानन्त ली, कर शिवालय वास। अव्यय अविनाशी सथिरस्वयंज्योतिपरकाशहीपान १ स्व प्रातममें वाग है, रुलत नहीं संसार। ज्योके त्यों निश्चल सदा, बंदत भवधि पार होपनिrefers इसुभग सरावन योग्य है, उत्तम भाव धराय। पष्टम तीन लोकमे सार है, मुनिजन बंक्तिपाय |हीपह प्रेमापार IITTET जा सबके अग्रेसर भये, सबके हो सिरताज । ३३८५ तमसे बड़ा न और है, सवके कर हो काज 1 ही पदं पेष्ठाय नम पापं ॥१४॥ 4SUPITAL mnan

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