________________
menor
सिद्ध
जगत जीव कल्याण कर, धर्म मर्याद बखान । ब्रह्म ब्रह्म भगवान हो, महामुनी सब मान॥ॐ ह्रीमहं ब्रह्मणं नम पर्ण ॥६६६ प्रजापति प्रतिपाल कर, ब्रह्मा विधि करतार । मन्मथ इन्द्री वश करन, बंटू सुख आधार ॥ॐह्री महं विधाने नम अध्यं ॥६६॥ तीन लोककी लक्षमी, तुम चरणाम्बुज वास । श्रीपति श्रीधर नाम शुभ, दिव्यासन सुखरास ॥ ह्रीमह कममासनाय नम प्रश्नी । बहुरि न जगमें भमण है, पंचम गति में बास। नित्य अंमरता पाइयो, जरा मृत्युको नाश ॥ ह्री ग्रह मनम्मिने नमाअध्यं ।।६६६, । पांच काय पुद्गलमई, तामें एक न होय । । केवल प्रात्म प्रदेश ही, तिष्ठत है दुख खोय॥ही अहं प्रात्ममुवे नम अध्या ६ लोक शिखर सुखसों रहै, ये ही प्रभुता जान । धारत हैं तिहुँ लोकमे, अधिक प्रभा परधान ॥ ह्रींगहलोकशिखरदिवासिनेनमःअध्यं पूजा अधिकंप्रतापप्रकांश है, मोह तिमिरको नाश । शिवमग दिखलायत सही,सूरजसमप्रतिभास॥ॐहीहंसुरज्येष्ठाय नमःप्रयं।७०२।
अष्टम
IA
३५५