Book Title: Siddhachakra Vidhan
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur
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३८२
ब्रहम ज्ञानको वेदकर, भये शुद्ध अविकार। सिद्धः पुरण ज्ञानी हो नमू, लहो वेदको सार ॥ॐह्री प्रहं ब्रह्मविदे नम अध्यं ॥८८७॥ वि० शब्द ब्रह्मके ज्ञानते, आतम तत्त्व विचार।
शक्लध्यानमेलय भए,हो अतर्क अविचार॥ ह्रीग्रह शब्दाद्वैतब्रह्मणे नम अध्यं ८८८ सक्षम तत्त्व प्रकाश कर,सक्षम कर्म उच्छेद । मोक्षमार्ग परगट कियो,कहोसु अन्तर भेदहीग्रहं मूक्ष्मतत्त्वप्रकाशनिनाय नमः। तीन शतक त्रेसठ जु है, सब मानै पाखण्ड। धर्म यथारथ तुमकहो,तिन सबको करि खंड ॥ह्री अहं पाखण्डखण्डकाय नम अयं ।। कर्णरूप करतार हो, कोइक नयके द्वार । सुरमुनि करि पूजत भए,माननीक सुखकार ॥हीअहँ नयाधीनजे नमःप्रयं ।८६१.६ केवलज्ञान उपाइके, तदनन्तर हो मोक्ष ।
अष्टम साक्षात् बडभागस, पूजू इहाँ परोक्ष ॥ॐ ह्रीग्रह अन्तकृते नम प्री ।।८९२॥ पूजा शरणागतको पार कर, देत मोक्ष अभिराम ।
१ ३८२ तारण तरणसु नाम है, तुम पद करू प्रणाम ॥ॐ ह्रीपहपारकृते नमःप्रय ८९२।।

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