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तुम देवनके देव हो, महादेव है नाम ।। । विन ममत्व शुद्धात्मा, तुम पद करू प्रणाम ॥ॐ ह्री अहंदिगम्बराय नम अर्घ्य ६८२ १७३ सर्व व्यापि कुमती कहै, करो भिन्न विश्राम ।
जगसों तजी समीपता, राजत हो शिवधाम ॥ ह्रींग्रहं निरतरजिनायनम अर्घ्य ६८३ हितकारी अति मिष्ट है, अर्थ सहित गम्भीर । प्रियवाणी कर पोखते, द्वादश सभासु तीर॥ह्रीमह मिष्टदिव्यध्वनिजिनायनमःअध्यं ।
भवसागरके पार हो, सुखसागर गलतान । ६ भव्य जीव पूजत चरन, पावै पद निरवान ॥ ह्रीअहं भवातकाय नमःमध्य ।६८५ ॥ । नहीं चलाचल भाव हैं, पाप कलाप न लेश ।
हद परिणत निजात्मरति,पूजू श्रीमुक्तेश॥ह्रोप्रहं दृढव्रताय नम अर्घ्य ।६८६६ असंख्यात नय भेद है, यथायोग्य वच द्वार ।
अष्टम तिन सबको जानोसुविध,महानिपुरणमतिनार॥ ह्रीप्रहनयात्तु गायनम अध्य।६८७ पूजा क्रोधादिक सु उपाधि हैं, प्रात्म विभाव कराय।
१३५३ तिनको त्याग विशुद्ध पद,पायो पूजू पाय ॥ॐहीअहँ निष्कलकाय नम.अध्यं ।६८८०