Book Title: Siddhachakra Vidhan
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur
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इ.इन्द्रादिक पूजत जिन्हैं। पंचकल्यारणक-थापः। मादिभत-पराक्रमको धरै, नमत'नस भव पाप ह्रीमहं पुरुषोत्तमायनमःअध्य७१७, वि०निज प्रदेश में बसत हैं, परमातमको वास।. ३५८ 'श्रीप मोक्षकनाथ हो; आप हि मोक्ष निवासहीअहंवैकुण्ठाधिपतयेनमःमध्ये ७१८
सर्व-लोक कल्याणकर, विष्णु नाम भगवान । श्री अरहंत स्व लक्ष्मी , ताके भरता जान ॥ॐ ह्रीं प्रहं सर्वलोकश्रेयस्करजिनामनम मुनिमन कुमुदनि मोदकर, भव संताप विताश । १ परण चन्द्र त्रिलोकमे, पूरण प्रभा प्रकाश ॥ ह्री प्रहं हृषीकेशाय नमोऽध्यं ॥७२.15 ६. दिनकर सम परकाश कर, हो देवनके देव । ब्रह्माविष्णु कहातहो,शशि समदुति स्वयमेव ॥ह्रींमह हरये नमोऽध्यं ।।७२१॥ स्वयं विभवके हो धनी, स्वयं ज्योति परकाश ।।
अष्टम । स्वयंज्ञानहग वीर्य सुख, स्वयं सुभाव विलास॥ॐ ह्रीमह स्वयमुवे नम अध्य।७२२१ पूजा धर्म-भारधर धारिणी, हो जिनेन्द्र भगवान ।
- १३५८ तमको पंजों भावसो, पाँऊ पद निर्वाण ॥ॐ ह्रीमह विश्वम्भरायनम अयं ।।७२३॥
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