Book Title: Siddhachakra Vidhan
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 400
________________ संस्कारादि स्वगुरण सहित, तिन करि हो आराध्यं । सिद्ध० तुमको बंदों भावसों, मिटे सकल दुख व्याध्य ॥ ही श्रहं द्विजा राध्याय नम अर्घ्यं ७७३ वि० निजै श्रातम निज ज्ञान है, तामे रुचि परतीत । ३६६ पर पद सोहै अरुचिता, पाई श्रक्षय जीत ॥ॐ ह्री ग्रहँ सुषाशोचिषे नम.प्रध्यं । ७७४। जन्म मरणको प्रादि लै, सकल रोगको नाश । दिव्य औषधि तुप धरों, श्रसर करन सुखरास ॥ ॐ ह्रीं श्रीं प्रौषधीशाय नम प्रध्य।७-१ पूररण गुरण परकाश कर, ज्यो शशि किरण उद्योत । मिथ्य तप निस्वारतै, दर्शित आनंद होत ॥ॐ ह्रीग्रहं कमलानिधये नम श्रध्यं ॥७७६ ॥ सूर्य प्रकाश धरै सही, धर्म मार्ग दिखलाय । चार संघ नायक प्रभू, बंदू तिनके पाय ॥ ह्री ग्रह नक्षत्रनाथाय नमः श्रयं ॥७७७ भव-तप-हर हो चन्द्रमा, शीतलकार कपूर । तुमको जो नर सेवते, पाप कर्म हो दूर ॥ ॐ ह्री ग्रहं शुभ्राणवे नमःप्रघ्यं । ७७८ स्वर्गादिककी लक्ष्मी, तासो भी जु ग्लान । स्वै पदमें आनंद है, तीन लोक भगवान ॥ ॐ ह्रीप्रसौम्यमावरताय नमः मर्घ्यं॥७७ε I अष्टम पूजा ३६६

Loading...

Page Navigation
1 ... 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442