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सिद्ध०
वि०
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धर्म सहायक हो प्रभू, धर्म मार्ग को लीक ।
मर्यादा बंध प्रति, करण चलावन ठीक॥ॐ ह्रींसह धर्मसारथये नम प्रय।६७५ शिव मारग दिखलाय कर, भविजन कियो उद्धार । धर्म सुयश विस्तार कर, बतलायो शुभ सारहीअहं शिवकोतिजिनाय नम अध्या मोह अन्ध हन सूर्य हो, जगदीश्वर शिवनाथ । मोक्षमार्ग परकाश कर, नमजोर जुगहाथा॥ ह्रीपहंमोहाधकार विनाशकजिनाय नम मन इन्द्री व्यापार विन, भाव रूप विध्वंश । ज्ञान प्रतीन्द्रिय धरतहो,नमत नशै अघवंश!ॐ ह्रीअहं प्रतीन्द्रियज्ञानरूपजिनायनम पर उपदेश परोक्ष विन, साक्षात् परतक्ष । जानत लोकालोक सब,धारै ज्ञान अलक्ष॥ॐ ह्रीमहं केवलज्ञानजिनाय नम अयं ELE व्यापक हो तिहुँ लोकमें, ज्ञान ज्योति सब ठौर । तमको पूजत भावसों, पाऊं भवदधि अोर ॥ ह्रीं महं विश्वभूतये नमःमध्यं ।६०। पूजा इन्द्रादिक कर पूज्य हो, मुनिजन ध्यान धराय । तीन लोक नायक प्रभू, हमपर होउ सहाय॥ ॐ ह्रींग्रहं विश्वनायकाय नमःअयं ।
अष्टम
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