Book Title: Siddhachakra Vidhan
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur
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मद्ध वि०
जाको पार न पाइयो, गरगधर और सुरेश। थकित रहै असमर्थ करि, प्रणमे संत हमेश।। ह्रीअहं अनतनाथायनम अयं ६३३
अनागार आगारके, उद्धारकः जिनराज। १४६ धर्मनाथ प्रणम् सदा, पाऊं शिवसुख साज॥हीअहं धर्मनाथाय नमःप्रयं ।६३०
शांति रूप पर शांति कर, कर्म दाह विनिवार । शांति हेतु बंदू सदा, पाऊं भवदधि पार॥ॐही अहं शातिनाथाय नम.प्रयं ।६३५॥ क्षुद्र वीर्य सब जीवके, रक्षक है तीर्थेश । शरणागत प्रतिपाल कर, ध्यावै सदा सुरेश ॥४ह्रो ग्रह कुन्युनाथायनमःप्रय ६३६ पूजनीक सब जगतके, मंगलकारक देव । पूजत है हम भावसो, विनशै अंघ स्वयमेव ॥ॐही अहं प्ररनाथाय नम प्रय।६३७॥ मोह काम भट जीतियो, जिन जीतो सब लोक । लोकोत्तम जिनराजके,नमूचरण दे धोक ॥ ह्रीमह मल्लिनाथाय नम अध्यं ६३८ पंच पापको त्यागकरि, भव्य जीव आनन्द ।
।। , ॐ ह्रीं अहं मुनिसुव्रताय नम अध्यं ।।६३६।।
अष्टम
पूजा

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