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। इन्द्र समान न भक्त हैं, तुम समान नहीं देव । सिद्धार ध्यावत है नित भावसों, मोक्ष लहै स्वयमेव ॥ॐ ह्रींप्रहंशकाञ्चितायनमःमध्य २८३ वि०. तुम देवन के देव हो, सदा पूजने योग्य । । २६६ जे पूजत है भावसो, भोगै शिवसुख भोग॥ही ग्रहं देवदेवाय नम अध्यं ।।२८४॥ । तीन लोक सिरताज हो, तुम से बड़ा न कोय ।
सुरनर पशु खग ध्यावते, दुविधामन की खोय॥ॐ ह्रीअहंजगद्गुरवेनम अध्यं २८५ ६ जोहो सोही तुम सही, नहीं समझमे प्राय ।
सुरनर मुनिसब ध्वावते, तुम वारणीको पाय॥ही अहं देवसघाचार्याय नम अर्ध्य । ज्ञानानन्द स्वलक्ष्मी, ताके हो भरतार ।
स्वसुगंध वासित रहो, कमल गंधकी सार॥ ही अहं पद्मनन्दाय नम.अध्यं ॥ ९॥ ६ सब कुवादि वादी हते, वज़ शैल उनहार । ६ विजयध्वजा फहरात है, बंदूं भक्ति विचार हींग्रहंजयध्वजानम अध्या२८८। पूजा ६. दशोदिशा परकाश है, तनकी ज्योति अमंद ।
भविजन कुमुद विकास हो, बंदू पूरण चंद ॥ ही पहुँमामण्डलिने नम मध्य। १८६)
अष्टम
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