________________
है स्वयं बुद्ध शिवनाथ हो, धर्म तीर्थ करतार।
तुम सम सुमति न को धरै, मै बंदू निरधार ॥ ह्रीमहंघर्मतीर्थकर्त्रे नम अध्यं ४०६,
पूरण शक्ति सुभाव धर, पूजत ब्रह्म प्रकाश । ३१४ पूरण पद पायो प्रभू, पूजत पापविनाश ॥ ह्रीग्रह पूर्णपदप्राप्ताय नम प्रय॑ ।।४१।।
तुमसे अधिक न और है, त्रिभुवन ईश कहाय । तीन लोक अत्यन्त सुख, पायो बंदूताय ॥ॐ ह्रीमहं त्रिलोकाधिपतयेनम मध्यं ॥४११
तीन लोक पूजत चरण, ईश्वर तुमको जान । ६ मै पूजों हो भावसो, सबसे बड़े महान ॥ॐ ह्री महं ईशाय नम अयं ।।४१२।।
सूरज सम परकाश कर, मिथ्या तम परिहार । भविजन कमल प्रबोधको, पायोनिजहितकार॥ॐ ह्रीमहं ईशानाय नम.मध्य ४१३ ॥ क्रोडा करि शिवमार्ग मे, पाय परम पद आप।। प्राज्ञा भगन हो कभी, बदत नाशे पाप ॥ॐ ह्री अहं इन्द्राय नमः अध्यं ॥४१४।। उत्तम हो तिहुँ लोकमे, सबके हो सिरताज। शरणागत प्रतिपाल हो, पूजू प्रातम काज ॥ॐ ह्रीग्रहं त्रिलोकोत्तमाय नम अध्य॑ ४१५
ninema
rammam