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अधिक भूतिके हो धनी, सर्व सुखी निरधार।
सुरनर तुम पदको लहै, पूजत हूँ सुखकार ॥ॐ ह्री पहँ अधिभुवे नम अध्यं ।४१६॥ है तीन लोक कल्याण कर, धर्म मार्ग बतलाय।
सब देवनके देव हो, महादेव सुखदाय ॥ॐ ह्रीं प्रह महेश्वराय नमः अयं ।।४१७।। । महा ईश महाराज हो, महा प्रताप धराय।
महा जीव पूर्जे चरण, सब जन शरण सहाय ॥ॐ ह्रीप्रहं महेशाय नम अयं ।।१८।। परम कहो उत्कृष्टको, धर्म तीर्थ वरताय । परमेश्वर यातें भये, बंदू तिनके पाय ॥ॐ ह्री प्रहं परमेश्वराय नमःअध्य॑ ।।४१६।। तुम समान कोई नहीं, जग ईश्वर जगनाथ । महा विभव ऐश्वर्यको,धरो नमू निज माथ॥ॐ ह्री ग्रह महेशिने नम.प्रय ४२० चार प्रकारनके सदा, देव तुम्हें शिर नाय। सब देवनमें श्रेष्ठहो, नमूयुगल तुम पाय॥ॐही अहं अधिदेवाय नम अध्यं ॥४२॥ पूजा तुम समान नहिं देव अरु, तुम देवनके देव । यो महान पदवी धरौ, तुम पूजत हूँ एव ।।ॐही अहँ महादेवाय नम अयं ॥४२२॥
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