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६ सब इन्द्रिय मन रोकक, पारोहरण तिस भाव । सिद्ध है श्रेणी उच्च चढ़ावमे, तत्पर अन्त सुपाव ॥ ह्रींसह समारोहणतत्पराय नम.अध्यं । ।
ई एकाश्रय निज धर्ममे, परसों भिन्न सदीव । १ सहज स्वभाव विराजते, सिद्धराज सबजीव॥ह्रींअहं सहजसिद्धस्वरूपाय नमःअध्यं । ३ राग द्वेष विन सहज ही, राजत शुद्ध स्वभाव।
मन विकल्प नहीं भावमें, पूजत हों धरि चाव॥ॐह्रींग्रहं सामायिकाय नम मयं । । निजानन्द निज लक्षमी, भोगत ग्लानि न होय । अतुल वीर्य परभावतै, परमादी नहीं होय॥ ह्रीमहं निष्प्रमादाय नमःअध्यं ।५. है अनादि संतान करि, कभी भयो नहीं आदि । नित्य शिवालय पूर्णता, बसै जगत अघवादि॥ह्री प्रहप्रकृताय नम अयं ।५०४३ पर पदार्थ नहीं इष्ट है, निजपदमे लवलीन ।
अष्टम विघ्न हरण मंगल करण, तुम पद मस्तक दीन ॥ॐ ह्रीपहँ परममावाय नमाप्रयं पूजा नित्य शौच संतोष मय, पर पदार्थसों रोक ।
३३२७ निश्चय सम्यक् भाव मय, है प्रधान धू धोक॥ॐ ह्री ग्रहं प्रधानाय नमःअध्यं ५.६।।
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