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लोक तिमिर हर सूर्य हो, तारण लोक जिहाज ।
सिद्ध लोकशिखर राजत प्रभू, मैं बंदू हित काज ॥ह्री लोकेश्वरायनम ग्रन्यं । ४३० तीन लोक प्रतिपाल हो, तीन लोक हितकार ।
वि०
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तीन लोक तारण तरण, तीन लोक सरदार ॥ ॐही ग्रह लोकपतये नम अध्यं४३१ लोक पूज्य सुखकार हो, पूजत हैं हित धार ।
मै पूजो नित भावसों, करो भवार्णव पार ॥ ॐ ह्रीग्रहं लोकनाथाय नम ग्रध्यं ।४३२, पूजनीक जगमे सही, तुम्हें कहै सब लोग ।
धर्म मार्ग प्रकटित कियो, यातें पूजन योग ॥ॐ ह्रीं ग्रहं जगपूज्याय नम ग्रध्यं ॥४३३० ऊरध अधो सु मध्य है, तीन भाग यह लोक ।
तिनमे तुम उत्कृष्ट हो, तुम्है देत नित धोक ॥ ह्री ग्रहं त्रिलोकनाथायनम ग्रध्य। तुम समान समरथ नहीं, तीन लोकमे और ।
स्वयं शिवालय राजते, स्वामी हो शिरमौर ॥ॐ ह्री ग्रह लोकेशायनम अर्घ्यं ॥ ४३५॥ जगत नाथ जग, ईश हो, जगपति पूजे पाँय ।
मैं पूजूं नित भाव युत, तारण तरण सहाय ॥ॐ ह्री जगन्नाथाय नम पये ४३६
अष्टम
पूजा
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