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। महाभाग सरधानतें, तुम अनुभव करि जीव । सिद्ध० सो पनि सेवत पाप तज, निजसुख लहै सदीव ॥ॐ ह्रीमहमहागजायनम भय२०६६
यज्ञ-विधि उपदेशमे, तुम अग्रेश्वर जान । यज्ञ रचावनहार तुम, तुम ही हो यजमान ॥ ह्रींमहप्रप्रयाजनायनम.प्रयं ।।२०।। । तीन लोकके पूज्य हो, भक्ति भाव उर धार ।
धर्म अर्थ अरु मोक्षके, दाता तुम हो सार ॥ह्रीं महजगत्पूज्याय नमःप्रध्य 1२७८। । दया मोह पर पापतें, दूर भये स्वतंत्र। ब्रह्मज्ञानमे लय सदा, जपूनाम तुम मंत्र॥ही महे दणापराय नम.प्रयं ॥२८६ । तुम ही पूजन योग्य हो, तुम ही हो प्राराध्य । महा साधु सुख हेतुते, साधे है निज साध्य ॥ ह्रींपर्ह पूज्यायिनम.प्रध्ये ॥२८॥ निज पुरुषारथ सधनको, तुमको अर्चत जक्त ।
प्रप्टम मनवांछित दातारहो, शिव सुख पावै भक्त ॥ॐहीपहजगदाच्चितायनमःमध्य २८१ पूजा । ध्यावत है नितप्रति तुम्है, देव चार परकार।।
३२६५ ३ तुम देवनके देव हो, नमू भक्ति उर धार ।। ॐ ह्रींप्रर्हदेवाधिदेवायनम.प्रय ८२.8
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