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सिद्ध
वि.
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बीच में न अन्तराय, आप ही सुखाय धाय ।
या अबाध धर्मको प्रकाशमें करै सहाय ॥ सरि धर्मको प्रकाश, सिद्ध धर्म रूपं जान।
मै नमूत्रिकाल एक ही अभेद पक्षमान ॥२१६॥
ॐ ह्री सूरिदर्शनलोकोत्तमेभ्यो नम. अध्यं । मोह भारको निवार, शुद्ध चेतना सुधार ।
यह वीर्यता अपार लोकमे प्रशंसकार ॥ सरि धर्मको प्रकाश, सिद्ध धर्म रूप जान ।
मैं नमूत्रिकाल एक ही अभेद पक्षमान ॥२१७॥
ॐ ह्री सूरिवीर्यलोकोत्तमेभ्यो नमः अर्घ्य । धर्म केवली महान, मोह अन्ध तेज भान ।
सप्त तत्त्वको बखानि, मोक्ष-मार्ग को निधान । सूरि धर्मको प्रकाश, सिद्ध धर्म रूप जान ।
मै नमूत्रिकाल एक ही प्रभेद पक्षमान ॥२१॥ ॐ ह्री केवलधर्माय नम अध्यं ।
सप्तमी
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